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________________ अल्पदीक्षा-पर्याय युक्त भिक्षु के संबंध में पद-विषयक विधान xxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkxxxkkkkkkkkkkakakakakakke आचार, विशद ज्ञान, धर्म प्रभावना, संयम प्रकर्ष, धर्मोपदेश में नैपुण्य, त्याग-वैराग्यमय व्यक्तित्व, अखण्ड, अभग्न व्रतपालकता इत्यादि से संबंधित है। ये ऐसी विशेषताएँ हैं, जिनसे साधक का व्यक्तित्व और कृतित्व आध्यात्मिक दृष्टि से उज्ज्वल, निर्मल, ओजस्वी, वर्चस्वी और तेजस्वी होता है। जिनमें ये विशेषताएँ होती है, वे बड़ी ही कुशलता और सफलता के साथ अपने पदों का दायित्व सम्भाल सकते हैं। इन सभी विशेषताओं में सबसे मुख्य आचारशीलता है। यही कारण है कि आचारकुशल का यहाँ प्रथम विशेषण के रूप में प्रयोग हुआ है। ज्ञानाचार और विनयाचार के रूप में आचार के मुख्य दो भेद बतलाए गए हैं। स्वाध्याय के लिए जो-जो उचित काल बतलाए गए हैं, उनमें आगम सूत्रों का अध्ययन, अनुशीलन, आवर्तन करना, अपने ज्ञान आदि को अधिकाधिक निर्मल बनाना, गुरुजन का बहुमान करना ज्ञानाचार है। रत्नाधिक - ज्ञान-दर्शन-चारित्र रूप रत्नत्रय में जो अधिक हों, ऊँचे हों - दीक्षा-पर्याय में बड़े हों, उनका आदर करना, उनके आगमन पर खड़े होना, उन्हें आसन आदि देना, प्रणमन करना, प्रतिलेखन के अनन्तर आचार्य के समीप आकर उनसे निवेदन करना कि हे भगवन् ! आज्ञा दें, मैं आपकी क्या सेवा करूँ? वे जैसी आज्ञा दें, रुचिपूर्वक वैसा कार्य करना विनयाचार है। ये दो तो आचार के विशिष्ट पहलू हैं। सामान्यतः संयमानुप्राणित आचार विषयक अन्यान्य सभी पक्षों का रुचिपूर्वक, योग्यतापूर्वक पालन करना आचार कुशलता में समाविष्ट है। अल्पदीक्षा-पर्याय युक्त भिक्षु के संबंध में पद-विषयक विधान णिरुद्धपरियाए समणे णिग्गंथे कप्पइ तदिवसं आयरियउवझायत्ताए उद्दिसित्तए, से किमाहु भंते! अस्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि कडाणि पत्तियाणि थेजाणि वेसासियाणि संमयाणि सम्मुइकराणि अणुमयाणि बहुमयाणि भवंति, तेहिं कडेहिं तेहिं पत्तिएहिं तेहिं थेज्जेहिं तेहिं वेसासिएहिं तेहिं संमएहिं तेहिं सम्मुड़करेहिं तेहिं अणुमएहिं तेहिं बहुमएहिं जं से णिरुद्धपरियाए समणे णिग्गंथे कप्पइ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तदिवसं ॥७८॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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