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________________ उपाध्याय, आचार्य एवं गणावच्छेदक पद-विषयक योग्यताएं XXXXX***★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ ___७४. पांच वर्ष के दीक्षा पर्याय से युक्त श्रमण, निर्ग्रन्थ, जो आचारकुशल, संयमकुशल, प्रवचनकुशल, प्रज्ञप्तिकुशल, संग्रहकुशल, उपग्रहकुशल, अक्षताचार, अभिन्नाचार, अशबलाचार, असंक्लिष्टाचार, बहुश्रुतज्ञ, बहुआगमज्ञ तथा जघन्यतः दशाश्रुतस्कन्ध, बृहत्कल्प एवं व्यवहार सूत्र का ज्ञाता हो, उसे आचार्य या उपाध्याय पद पर नियुक्त - मनोनीत करना कल्पता है। ____७५. वह पंचवर्षीय दीक्षा पर्याय युक्त श्रमण, निर्ग्रन्थ यदि आचार, संयम, प्रवचन, प्रज्ञप्ति, संग्रह तथा उपग्रह में कुशल न हो, जो क्षताचार, भिन्नाचार, शबलाचार एवं संक्लिष्टाचार सहित हो, अल्पश्रुतज्ञ और अल्पआगमज्ञ हो तो उसे आचार्य या उपाध्याय पद पर नियुक्त - मनोनीत करना नहीं कल्पता। ७६. आठ वर्ष के दीक्षा पर्याय से युक्त श्रमण, निर्ग्रन्थ, जो आचारकुशल, संयमकुशल, प्रवचनकुशल, प्रज्ञप्तिकुशल, संग्रहकुशल, उपग्रहकुशल, अक्षताचार, अभिन्नाचार, अशबलाचार, असंक्लिष्टाचार, बहुश्रुतज्ञ, बहुआगमज्ञ तथा जघन्यतः स्थानांग एवं समवायांग सूत्र का ज्ञाता हो, उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक के पद पर नियुक्त - मनोनीत करना कल्पता है। ७७. वह अष्टवर्षीय दीक्षा पर्याय युक्त श्रमण, निर्ग्रन्थ यदि आचार, संयम, प्रवचन, प्रज्ञप्ति, संग्रह और उपग्रह में कुशल न हो, जो क्षताचार, भिन्नाचार, शबलाचार तथा संक्लिष्टाचार सहित हो, अल्पश्रुतज्ञ एवं अल्प आगमज्ञ हो तो उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक के पद पर नियुक्त - मनोनीत करना नहीं कल्पतां। विवेचन - गण या संघ में भिक्षुओं को ज्ञानाराधना, चारित्राराधना, संयम का उत्तरोत्तर संवर्धन, अध्यात्मोपयोगी दैनंदिन चर्या का भलीभांति निर्वाह, भिक्षु संघ की आध्यात्मिक दृष्टि से. समुन्नति इत्यादि हेतु संप में अनेक पदों की व्यवस्था की गई है। उनमें उपाध्याय, आचार्य: एवं गणावच्छेदक के पद अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उपाध्याय, भिक्षुओं को आगमों की वाचना देते हैं - शुद्ध पाठ सिखलाते हैं। आगम अर्थ-प्रधान होने के साथ-साथ शब्द-प्रधान भी हैं, क्योंकि तीर्थकरों द्वारा अर्थ रूप में भाषित धर्मदेशना का गण या शब्द रूप में संकलन करते हैं। यह आवश्यक माना गया कि आगमों की शब्द संरचना सर्वथा अपरिवर्तित रहे, सर्वथा शुद्ध बनी रहे। इतिहास से यह सिख कि इस दृष्टि से समय-समय पर जैन भिक्षु संघ में आगमों की वाचनाएँ हुई हैं, जिनमें दूर-दूर के आगमवेत्ता भिक्षु सम्मिलित हुए। आगमों का समवेत रूप में पाठ किया, पाठ का समन्वय किया । इस प्रकार तीन वाचनाओं का उल्लेख प्राप्त होता है - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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