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___ कुटिलता सहित एवं कुटिलता रहित आलोचना : प्रायश्चित्त kakkarutakattituatikkattarakkaxxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkarte
उसके उपरान्त निष्कपट भाव से या कपट पूर्वक (एक बार) आलोचना करने पर वही छह मासिक प्रायश्चित्त आता है।
१६. जो भिक्षु चार महीनों या चार महीनों से अधिक का या पांच महीनों या पांच महीनों से अधिक का अथवा इनमें से किसी एक परिहार स्थान का बहुत बार प्रतिसेवन कर उसकी निष्कपट भाव से आलोचना करे तो उसे चार महीनों या चार महीनों से अधिक का अथवा पांच महीनों या पांच महीनों से अधिक का प्रायश्चित्त आता है एवं यदि वह कपट पूर्वक आलोचना करे तो उसे पांच महीनों या पांच महीनों से अधिक का या छह महीनों का प्रायश्चित्त आता है।
उसके उपरान्त निष्कपट भाव से या कपट पूर्वक बहुत बार आलोचना करने पर वही छह मासिक प्रायश्चित्त आता है। .
१७. जो भिक्षु चार महीनों या चार महीनों से अधिक यां पांच महीनों या पांच महीनों से अधिक अथवा इनमें से किसी एक परिहारस्थानों की (एक बार) आलोचना करे, तो वह निष्कपट भाव से आलोचना करता हुआ स्थापनीय - आसेवित - प्रतिसेवना के अनुसार प्रायश्चित्त रूप परिहार-तप में स्थापित करके उसकी समुचित वैयावृत्य करे।
यदि वह परिहार तप में स्थापित होने पर भी किसी प्रकार की प्रतिसेवना करे तो उसका सम्पूर्ण प्रायश्चित्त पूर्व प्रायश्चित्त में इस प्रकार आरोहित - सम्मिलित कर देना चाहिए -
१. पूर्व प्रतिसेवित दोष की पूर्व - पहले आलोचना की हो। २. पूर्व प्रतिसेवित दोष की पश्चात् - पीछे आलोचना की हो। ३. पश्चात् - पीछे प्रतिसेवित दोष की पूर्व - पहले आलोचना की हो। ४. पश्चात् - पीछे प्रतिसेवित दोष की पश्चात् - पीछे आलोचना की हो। ५. निष्कपट भाव से आलोचना करने का संकल्प कर निष्कपट भाव से आलोचना की हो। ६. निष्कपट भाव से आलोचना करने का संकल्प कर कपट पूर्वक आलोचना की हो। . ७. कपट सहित भाव से आलोचना करने का संकल्प कर कपट रहित भाव से आलोचना की हो। ८. कपट सहित भाव से आलोचना करने का संकल्प कर कपट सहित भाव से आलोचना की हो।
उपर्युक्त भंगों में से किसी भी प्रकार से आलोचना करने पर उसके समस्त स्वकृत दोष के प्रायश्चित्त को पूर्व प्रायश्चित्त में संहृत - सम्मिलित कर देना चाहिए।
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