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बृहत्कल्प सूत्र - छठा उद्देशक
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यक्षाविष्ट, उम्मायपत्तं - उन्मादग्रस्त, अट्ठजायं - अर्थजातां - सुवर्ण आदि गिरी हुई वस्तु को झुक कर उठाती हुई।
भावार्थ - ७. दुर्गम, विषम या पर्वतीय स्थान से स्खलित होती हुई या गिरती हुई साध्वी को प्रतिगृहीत करता हुआ या अवलम्बन देता हुआ साधु जिनेश्वर देव की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता।
८. दलदल, कीचड़, काई या जल में फिसलती हुई, डुबती हुई साध्वी को प्रतिगृहीत करता हुआ या अवलम्बन देता हुआ साधु जिनेश्वर देव की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता।
९. नाव पर चढ़ती हुई या उतरती हुई (जहाँ गिरना आशंकित हो) साध्वी को प्रतिगृहीत करता हुआ या अवलम्बन देता हुआ साधु जिनेश्वर देव की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता।
१०. विक्षिप्तचित्ता साध्वी को (यदि) साधु पकड़े या सहारा दे तो जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता।
११. दीप्तचित्ता साध्वी, को प्रतिगृहीत करता हुआ या सहारा देता हुआ साधु जिनेश्वर देव की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता।
१२. यक्षाविष्ट साध्वी को प्रतिगृहीत करता हुआ या अवलम्बन देता हुआ साधु जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। .
१३. उन्मादयुक्त साध्वी को प्रतिगृहीत करता हुआ या सहारा देता हुआ साधु जिनेश्वर देव की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। - १४. उपसर्गप्राप्त साध्वी को प्रतिगृहीत करता हुआ या अवलम्बन देता हुआ साधु जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता।
१५. क्रोधादि कषायाधिक्य (अधिकरण)युक्त साध्वी को प्रतिगृहीत करता हुआ या सहारा देता हुआ साधु जिनेश्वर देव की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। ___ १६. (वृहद् या कठोर) प्रायश्चित्त के कारण व्यथित साध्वी को प्रतिगृहीत करता हुआ या अवलम्बन देता हुआ साधु जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। ..
१७. आहार-पानी के प्रत्याख्यान से (अशक्त, दुर्बल) साध्वी को साधु सहारा दे तो वह जिनेश्वर देव की आज्ञा का उल्लंघन नहीं करता। .... १८. अर्थजात साध्वी को साधु प्रतिगृहीत करे (रोके - वैसा करने से मना करे तथा संयम में बढ़ने हेतु) अवलम्बन प्रदान करे तो वह जिनाज्ञा का उल्लंघन नहीं करता।
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