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________________ १३३ पुलाकभक्त ग्रहीत होने पर पुनः भिक्षार्थ जाने का विधि-निषेध 女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女女 ___इस तीनों में 'पहला' देह पोषक तत्त्व की अल्पता के कारण निस्सार है, क्योंकि पर्याप्त मात्रा में खा लेने पर भी शक्ति उत्पादकता उसमें नहीं होती। गन्धपुलाक, रसपुलाक में आए पदार्थ ऐसे हैं, जो कुरुचि, उन्माद, प्रमाद आदि बढ़ाने वाले हैं। इनमें पहला (धान्यपुलाक) कदन्नता के कारण नि:सार या तथ्य विहीन है, वही अगले दोनों संयम की निर्मलता में बाधक हैं, संयम को सारहीन बनाते हैं, इसलिए वे निस्सार हैं। सूयगडांग सूत्र में "निस्सारए होइ जहा पुलाए" - इस तथ्य को पुष्ट करता भिक्षा में पुलाक भक्त पान आ जाए तथा साधु यह जाने कि इससे दिन भर जीवन निर्वाह संभव है तो पुनः भिक्षार्थ न जाए। यदि निस्तथ्य धान्यपुलाक पर्याप्त मात्रा में हो अथवा रसपुलाक आदि अल्प मात्रा में हो तो भी पुनः भिक्षार्थ जाना कल्पनीय नहीं कहा गया है (दुष्पाच्यत्व के कारण)। दूध, खीर आदि सरस पदार्थ जिसके अधिक सेवन से संयम निस्सार बन जाता है। उसे पुलागभत्त कहते हैं। सतियों की स्थिति ज्यादा आहार उठाने जैसी नहीं होने से फिर अधिक विरेचनादि आदि का कारण न बन जाय, इसलिए साध्वी को पहले वह आहार उठाकर जरूरत हो तो आहार ग्रहण करना चाहिए। साधुओं की स्थिति प्रायः वैसी नहीं होती है वे उस आहार को उठाने के पहले भी दूसरा आहार ला सकते हैं। ___ इस सूत्र में केवल निर्ग्रन्थिनी या साध्वी का ही उल्लेख हुआ है। तब यह प्रश्न उपस्थित होता है कि यदि साधु को पुलाक भक्त-पान प्राप्त हो तो उनके लिए कोई मर्यादा है या नहीं? इस संदर्भ में भाष्यकार ने समाधान करते हुए कहा है - "एसेव गमो नियमा तिविहपुलागम्मि होई समणाण" - अर्थात् इन त्रिविध पुलाक के संदर्भ में जिस मर्यादा का उल्लेख साध्वियों के लिए हुआ है, वही साधुओं के लिए भी है। ॥ बृहत्कल्प सूत्र का पांचवाँ उद्देशक समाप्त॥ * सूयगडांग सूत्र - १,७,२६ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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