SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बृहत्कल्प सूत्र - पंचम उद्देशक ☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆☆ ☆☆☆☆☆☆☆☆ ☆☆☆☆ भिक्खू य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे असंथडिए णिव्वितिगिच्छे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेजा अणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जंच मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा णाइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ ८ ॥ भिक्खू य उग्गयवित्तीए अणत्थमियसंकप्पे असंथडिए विइगिच्छासमावण्णे असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा पडिग्गाहेत्ता आहारमाहारेमाणे अह पच्छा जाणेज्जाअणुग्गए सूरिए अत्थमिए वा, से जंच मुहे जं च पाणिंसि जं च पडिग्गहे तं विगिंचमाणे वा विसोहेमाणे वा णाइक्कमइ, तं अप्पणा भुंजमाणे अण्णेसिं वा दलमाणे राइभोयणपडिसेवणपत्ते आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्घाइयं ॥ ९ ॥ कठिन शब्दार्थ - ́ उग्गयवित्तीए - उद्गतवृत्तिक - सूर्योदय के पश्चात् भिक्षाचर्या करने वाला, अणत्थमियसंकप्पे - सूर्यास्त से पूर्व आहार सेवी, संथडिए - समर्थ, णिव्वितिगिच्छे - विचिकित्सा या शंका रहित, अणुग्गए - अनुदित सूर्य उदय नहीं हुआ, अत्थमिए - अस्त हो गया है, विगिंचिमाणे - परिष्ठापित करता हुआ, अइक्कमइ उल्लंघन करता है । Jain Education International - ११४ - ✩✩✩✩ भावार्थ ६. सूर्योदय के पश्चात् और सूर्यास्त से पूर्व अर्थात् दिन में भिक्षाचर्या के नियम वाला, असंदिग्घता जानने में समर्थ तद्विषयक संदेह रहित ज्ञान में समर्थ भिक्षु अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य को ग्रहण करता हुआ यह जाने सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्य अस्त हो गया है, उस समय यदि आहार का कौर उसके मुंह में, हाथ में या पात्र में है तो वह उसे परिष्ठापित कर दे तथा अपने मुंह आदि को शुद्ध कर ले। For Personal & Private Use Only - यों करने वाला जिनेश्वर देव की आज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है । यदि उस आहार को वह स्वयं खा ले या दूसरे साधु को दे दे तो उस पर रात्रि भोजन का दोष आता है तथा तदनुसार वह अनुद्घातिक चातुर्मासिक प्रायश्चित्त का भागी होता है। ७. सूर्योदय के अनन्तर या सूर्यास्त के पहले भिक्षाचर्या का संकल्पी (भिक्षु) सूर्योदय या www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy