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बृहत्कल्प सूत्र - चतुर्थ उद्देशक
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___ यदि वे आज्ञा न दें तो अन्य संघ के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक के रूप में जाना नहीं कल्पता है।
. उन्हें कारण स्पष्ट किए बिना अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदाता गुरु के रूप में जाना नहीं कल्पता है।
उनके समक्ष कारण स्पष्ट कर अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदाता गुरु के रूप में जाना कल्पता है।
. २८. आचार्य-उपाध्याय यदि अन्य गणवर्ती आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक के रूप में जाना चाहें तो उन्हें स्व-स्व पद का त्याग किए बिना परगणवर्ती आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदाता गुरु के रूप में जाना नहीं कल्पता है।
उन्हें अपने पद के समर्पण (त्याग) पूर्वक अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदाता के रूप में जाना कल्पता है।
. उन्हें (स्वगणवर्ती) आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा के बिना परगणवर्ती आचार्यउपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक के रूप में जाना नहीं कल्पता है। . . . उन्हें (आचार्य-उपाध्याय को) आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा से अन्य गणवर्ती आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक गुरु के रूप में जाना कल्पता है।
यदि ये आज्ञा दें तभी अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदाता गुरु के रूप में जाना कल्पता है।
यदि ये आज्ञा न दें तो अन्य गणवर्ती आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक के रूप में जाना नहीं कल्पता है। - उन्हें स्पष्ट कारण बतलाए बिना अन्य गण के आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचना प्रदाता गुरु के रूप में जाना नहीं कल्पता है।
. उन्हें स्पष्ट कारण बतलाकर अन्य गणवर्ती आचार्य-उपाध्याय के यहाँ वाचनाप्रदायक गुरु के रूप में जाना कल्पता है।
विवेचन - जैन धर्म में ज्ञान एवं आचार दोनों का महत्त्व है। 'ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः' से यह स्पष्ट है। ज्ञान से प्रेरित और प्रमार्जित क्रिया अतीव निर्मल, उज्ज्वल और पावन होती है। अत एव श्रुत या आगमज्ञान यथेष्ट रूप में साधुओं को प्राप्त रहे। आचार्यउपाध्याय तो विशिष्ट जानी होने ही चाहिए।
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