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________________ बृहत्कल्प सूत्र - चतुर्थ उद्देशक ...................९४ *****************kikikikikikikikikikikikikikikikikikikt उवसंपजित्ताणं विहरित्तए, ते य से वियरेजा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए । उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए; ते य से णो वियरेजा, एवं से णो कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपजित्ताणं विहरित्तए; जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेजा, एवं से कप्पइ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, जत्थुत्तरियं धम्मविणयं णो लभेजा, एवं से णो कप्पड़ अण्णं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहंरित्तए॥२५॥ कठिन शब्दार्थ - संभोगपडियाए - संभोगप्रत्यक - आवास, भक्त-पान आदि एक साथ करने हेतु, जत्थुत्तरियं - जहाँ उन्नति, लभेजा - प्राप्त करे। भावार्थ - २३. (कोई) भिक्षु यदि अपने गण को छोड़कर अन्य गण में सांभोगिक व्यवहार हेतु जाने की इच्छा करे - जाने का भाव रखे तो उसे आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक स्थविर, गणी, गणधर या गणावच्छेदक से पूछे बिना अन्य गण में सांभोगिक व्यवहार हेतु जाना नहीं कल्पता। उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा से अन्य गण में सांभोगिक व्यवहार हेतु जाना कल्पता है। . यदि वे उसे आज्ञा दें तो ही अन्य गण में सांभोगिक व्यवहार हेतु जाना कल्पता है। यदि वे उसे आदिष्ट न करें तो अन्य गण में सांभोगिक व्यवहारार्थ जाना नहीं कल्पता है। . (यहाँ इतना और ज्ञातव्य है) यदि वहाँ धर्म और विनय की उन्नति होती हो तभी उसका अन्य गण में सांभोगिक व्यवहार हेतु रहना कल्पता है। यदि (वहाँ) संयम एवं धर्म की उन्नति नहीं हो तो उस अन्य गण में उसका सांभोगिक व्यवहार हेतु रहना नहीं कल्पता है। २४. यदि गणावच्छेदक स्वगण से निःसृत होकर अन्य गण में सांभोगिक व्यवहार हेतु जाना चाहे तो गणावच्छेदक को अपने पद का त्याग किए बिना अन्य गण में सांभोगिक व्यवहार हेतु जाना नहीं कल्पता है। गणावच्छेदक को स्वपद त्यागपूर्वक अन्य गण में सांभोगिक व्यवहार हेतु जाना कल्पता है। . उसे आचार्य यावत् गणावच्छेदक की आज्ञा के बिना (उन्हें पूछे बिना) अन्य गण में सांभोगिक व्यवहार हेतु जाना नहीं कल्पता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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