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________________ ५९ अवग्रहानन्तक और अवग्रहपट्टक धारण का विधि-निषेध ************************* ********************** *** __ 'युत' का तात्पर्य-सहित से है। वर्णयुत वस्त्र के कृष्ण, नील, लाल आदि पंचविध रंगों से संबंधित है। मूल्ययुत जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट के भेद से तीन प्रकार का है। अर्थात् यह स्थान विशेष पर वस्त्र के कम-अधिक मूल्य से संबंधित है। इसके अलावा राग भाव उत्पन्न करने वाले, रमणीय या चमक दसक वाले वस्त्र भी साधु-साध्वियों के लिए हेय होते हैं। .. अतः साधु-साध्वियों को वे ही वस्त्र कल्पनीय होते हैं, जो सर्वत्र सुलभ हों, सस्ते हों, चोरे जाने आदि का भय न हो, राग-आसक्ति बढ़ाने वाले न हों तथा श्रावकों के मन में अश्रद्धा उत्पन्न न करें तथा प्रमाणोपेत हों, जिससे विहार आदि में असुविधा न हो। अवग्रहानन्तक और अवग्रहपट्टक धारण का विधि-निषेध । णो कप्पइ णिग्गंथाणं उग्गहणंतगं वा उग्गहपट्टगं वा धारेत्तए वापरिहरित्तए वा॥१०॥ कप्पइ णिग्गंथीणं उग्गहणंतगं वा उग्गहपट्टगं वा धारेत्तए वा परिहरित्तए वा॥११॥ ___भावार्थ - १०. साधुओं के अवग्रहानन्तक और अवग्रहपट्टक धारण करना - अपने पास रखना और उपयोग में लेना नहीं कल्पता है। ११. साध्वियों को अवग्रहानन्तक और अवग्रहपट्टक रखना और उसका उपयोग करना कल्पता है। विवेचन - यहाँ प्रयुक्त अवग्रहानन्तक और अवग्रहपट्टक शब्द गुप्त अंगों को ढकने के लिए प्रयुक्त होने वाले वस्त्रों के लिए आए हैं। अवग्रहानन्तक लंगोट या कौपीन के लिए तथा अवग्रहपट्टक कौपीन के ऊपर के आच्छादक के लिए प्रयुक्त हुआ है। ___सामान्यतः ये वस्त्र या आच्छादक साध्वियों के लिए प्रयुक्त होते हैं क्योंकि मासिक ऋतुस्राव आदि के समय अन्य ऊपरी वस्त्र रक्तरंजित न हों, तदर्थ यह व्यवस्था दी गई है किन्तु विशेष परिस्थितियों में साधु भी इन्हें उपयोग में ले सकते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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