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________________ ५१ ☆☆☆☆☆★★★★★ पूज्यजनों को समर्पित आहार को ग्रहण करने का विधि-निषेध ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ पूज्यजनों को समर्पित आहार को ग्रहण करने का विधि-निषेध सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइएं पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए गिट्ठिए णिसिट्टे पडिहारिए, तं सागांरिओ देइ, सागारियस्स परिजणो देइ, तम्हा दावए, णो से कप्पइ पडिगाहित्तए ॥ २१ ॥ सांगारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए णिट्ठिए णिसि पडिहारिए, तं णो सागारिओ देइ, णो सागारियस्स परिजणो देइ, सागारियस्स पूया देइ, तम्हा दावए, णो से कप्पड़ पडिगाहित्तए ॥ २२ ॥ सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए गिट्टिए णिसिट्टे अपडिहारिए, तं सागारिओ देइ, सागारियस्स परिजणो देइ, तम्हा दावए, णो से कप्पड़ पडिगाहित्तए ॥ २३ ॥ Jain Education International सागारियस्स पूयाभत्ते उद्देसिए चेइए पाहुडियाए, सागारियस्स उवगरणजाए णिट्ठिए णिसिट्टे अपडिहारिए, तं णो सागारिओ देइ, णो सागारियस्स परिजणो देइ, सागारियस्स पूँया देइ, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिगाहत्तए ॥ २४॥ कठिन शब्दार्थ - पूयाभत्ते पूज्यजनों के सम्मान में दिया जाने वाला भोज, चेइए - समर्पित, पाहुडियाए - भेंट (प्राभृत), उवगरणजाए - उपकरणों पात्र आदि में बनाया गया, णिट्टिए - स्थित, णिसिट्टे निकाला गया, पूया पूज्या - पूजनीय पुरुष, देज़ा (दद्यात्) देवें। भावार्थ - २१. सागारिक द्वारा अपने पूज्यजनों के सम्मान में प्रस्तुत, समर्पित भोजन, जो उसके थाली आदि उपकरणों में रखा हुआ है, जो प्रातिहारिक है, यदि उस पात्र में से लेकर सागारिक या उसके परिजन दें तो साधु को लेना नहीं कल्पता । २२. सागारिक द्वारा अपने पूज्यजनों के सम्मान में प्रस्तुत, समर्पित भोजन, जो उसके थाली आदि उपकरणों में रखा हुआ हो, प्रातिहारिक हो, उसमें से न सागारिक दे और न सागारिक के परिजन दें किन्तु उनके पूज्य पुरुष दें तो (भी) साधु को लेना नहीं कल्पता है। २३. सागारिक द्वारा अपने पूज्यजनों के सम्मान में प्रस्तुत, समर्पित भोजन, जो उसके थाली आदि उपकरणों में रखा हो, अप्रातिहारिक हो, उसमें से सागारिक या उसके परिजन दें तो साधु को लेना कल्प्य नहीं है। ✰✰✰ - For Personal & Private Use Only - - www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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