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________________ बृहत्कल्प सूत्र - द्वितीय उद्देशक ४६ . . ३. वंशीमूल • छपरा, आरामगृह आदि बांस की खपच्चियों से बने होते हैं। ये जालीदार होते हैं, जिनमें से भीतर आवास करने वाला स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। ४. वृक्षमूल - वृक्ष का भूमि स्पर्शी भाग या वृक्षकोटर। ५. अभ्रावकाश • केवल चारदीवारी युक्त भवन या प्रायः ऊपर से ढका हुआ एवं चौ तरफ से खुला हुआ स्थान। ऐसे स्थानों में साध्वियों का ठहरना सर्वथा वर्जित है क्योंकि ये आवास स्थल उनके लिए अत्यंत असुरक्षित हैं। अत: शीलरक्षार्थ निर्ग्रन्थिनियों को किसी अन्य उपयुक्त आश्रय की तलाश करनी चाहिए। यदि उपयुक्त स्थान न मिले तो साध्वी को सूर्यास्त के पश्चात् भी शास्त्रानुमोदित, ब्रह्मचर्यरक्षार्थ अनुकूल स्थान की तलाश में उद्यत होना चाहिए। __ साधुओं के लिए ये स्थान अपवाद रूप में वर्जित तो नहीं है परन्तु फिर भी यथासंभव उपयुक्त स्थान की तलाश कर प्रवास करना ही कल्पता है। . अनेक स्वामी युक्त गृह में शय्यातरकल्प एगे सागारिए पारिहारिए, दो तिण्णि चत्तारि पंच सागारिया पारिहारिया, एगं • तत्थ कप्पागं ठवइत्ता अवसेसे णिव्विसेजा॥१३॥ कठिन शब्दार्थ - सागारिए - सागारिक - गृहस्वामी, पारिहारिए - पारिहारिक, कप्पागं - कल्पाक - सामष्टिक रूप में शय्यातर, ठवइत्ता - स्वीकार कर, अवसेसे.बाकी के स्वामियों को, णिव्विसेज्जा - स्वामित्व से पृथक् माने। भावार्थ- १३. (किसी) गृह का एक स्वामी पारिहारिक होता है। जहाँ दो, तीन चार या पाँच स्वामी पारिहारिक हों, उनमें से किसी एक को शय्यातर स्वीकार किया जाए। विवेचन - साधु-साध्वियों को जो गृहस्थ आवास हेतु स्थान प्रदान करता है, उसके लिए जैन परंपरा में शय्यातर का प्रयोग हुआ है तथा प्राकृत में 'सेआयर' शब्द का प्रयोग हुआ है। प्राकृत. व्याकरण की दृष्टि से व्यंजन का लोप करने से 'सेञ्जाअर' निष्पन्न होता है। फिर 'य' श्रुति द्वारा उसका 'सेजआयर' बन जाता है। इसके संस्कृत में तथा उसके शब्दकोष द्वारा विकसित भाषाओं में शय्यातर, शय्याकर, शय्याधर इत्यादि अनेक रूप Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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