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________________ ३५ ★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★★ आर्य क्षेत्रवर्ती देशों में विहरण का विधान साधु के लिए अकेले ना जाने का प्रावधान है, उसका तात्पर्य मुख्यतः ब्रह्मचर्य रक्षा से है। कहीं कोई स्त्री उपसर्ग उपस्थित हो जाय तो उसका विचलित होना आशंकित हो सकता है। इसके अलावा हिंसक जन्तु, दस्यु आदि की भी आशंका रहती है। यदि आयुष्य समाप्तिवश देहपात हो जाय तो देह की मर्यादानुरूप वांछित सार-संभाल न होने का भय रहता है इसीलिए एक या दो साथी साधुओं को साथ लेकर जाना कल्प्य कहा है। अपवाद रूप में ऐसा भी स्वीकार्य है - यदि साधु अवस्था में परिपक्व हो, दृढ परिणामों का धनी हो तो वह अन्य साधुओं को सूचित कर एकाकी भी बाहर जा सकता है। साध्वी के लिए भी एकाकिनी जाने का निषेध कर दो या तीन को साथ लेकर जाने का विधान किया गया है, जो उनकी अल्प दैहिक शक्ति के कारण है। . परिस्थितिवश ऐसा भी स्वीकार किया गया है कि साधु द्वारा श्रावकों को एवं साध्वी द्वारा श्राविकाओं को भी साथ लिया जा सकता है। आर्य क्षेत्रवर्ती देशों में विहरण का विधान कप्पइ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा पुरथिमेणं जाव अंगमगहाओ एत्तए, दक्खिणेणं जाव कोसम्बीओ एत्तए, पच्चत्थिमेणं जाव थूणाविसयाओ एत्तए, उत्तरेणं जाव कुणाला-विसयाओ एत्तए, एतावताव कप्पइ, एतावताव आरिए खेत्ते, णो से कप्पइ एत्तो बाहिं, तेण परं जत्थ णाणदंसणचरित्ताई उस्सप्पंति ॥४८॥त्ति बेमि॥ बिहक्कप्पे पढमो उद्देसओ समत्तो॥१॥ ___ कठिन शब्दार्थ - पुरथिमेणं - पूर्व दिशा में, अंगमगहाओ - अंग एवं मगध देश तक, एत्तए - जा सकते हैं, थूणाविसयाओ - स्थूणदेश पर्यन्त, एतावताव - इतना ही, आरिए खेत्ते - आर्य क्षेत्र, उस्सप्पंति - जाते हैं। भावार्थ - ४८. साधुओं और साध्वियों को पूर्व दिशा में यावत् अंग एवं मगध देश तक, दक्षिण दिशा में यावत् कोशाम्बी पर्यन्त, पश्चिम में यावत् स्थूणदेश तक ता उत्तर में यावत् कुणाल देश पर्यन्त जाना कल्पता है। इतना ही कल्प्य है, इतना ही आर्य क्षेत्र है। इससे बाहर जाना कल्पनीय नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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