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सागारिक युक्त स्थान में आवास का विधि-निषेध २१... अपवादों के साथ व्रतों को स्वीकार करता है, वह सागार या सागारिक कहा जाता है। इस व्युत्पत्ति के अनुसार इसका अर्थ श्रमणोपासक है।
यहाँ पर सागारिक शब्द से शय्यातर या अन्य कोई भी गृहस्थ समझना चाहिए। उसकी . निश्रा से जैसे - 'यहाँ हम रुके हुये हैं, अत: कोई भी परिस्थिति में आप ध्यान रखना' ऐसा उनको कह कर रखना। चाहे भय का स्थान हो या नहीं भी हो, स्वयं सशक्त (निडर) भी हो तो भी साध्वी को तो निश्रा लेनी ही चाहिए। शय्यातर का घर दूर भी हो सकता है। अतः पास वाले किसी भी सद्गृहस्थ की निश्रा लेना जरूरी है। अतः निश्रा लेना प्राचीन आगम विधि है। वर्तमान में कहीं न भी हो तो उसे चालू करना चाहिए। अन्यथा भाष्य में प्रायश्चित्त बताया है। ऐसा बहुश्रुत भगवन् फरमाते थे। - पाणिनीय व्याकरण निरूपित "अक: सवर्णे दीर्घः" सूत्र के अनुसार अ + अ, अ + आ, आ + अ, आ + आ - इन सभी की संधि में 'आ' बनता है। इसलिए स + अगार एवं सं + आगार - दोनों स्थितियों में 'सागार' ही बनेगा।
साध्वियों के सागारिक की निश्रा में रहने का जो विधान किया गया है, उसका आशय इनकी शील सुरक्षा से है। श्रावक या सद्गृहस्थ के यहाँ प्रवास करते समय दुराशय व्यक्तियों से आशंकित दुश्चेष्टाओं का खतरा नहीं रहता। र साधुओं के प्रवास में सागारिक की निश्रा - प्रश्रय अपरिहार्य नहीं है। यदि हो तो उत्तम है। .
सागारिक युक्त स्थान में आवास का विधि-निषेध णो कप्पड़ णिग्गंथाण वा णिग्गंथीण वा सागारिए उवस्सए वत्थए॥२५॥ णो कप्पइ णिग्गंथाणं इत्थिसागारिए उवस्सए वत्थए ॥२६॥ कप्पइ णिग्गंथाणं पुरिससागारिए उवस्सए वत्थए॥२७॥ णो कप्पइ णिग्गंथीणं पुरिससागारिए उवस्सए वत्थए॥२८॥ कप्पइ णिग्गंथीणं इत्थिसागारिए उवस्सए वत्थए॥२९॥
भावार्थ - २५. साधु-साध्वियों को सागारिक - गृहस्थ के आवास युक्त उपाश्रय (स्थान) में प्रवास करना नहीं कल्पना है।
- २६. केवल स्त्री निवास युक्त (स्त्री सागारिक) उपाश्रय में साधुओं को रहना विहित नहीं है।
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