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________________ राजा श्रेणिक द्वारा अधिकारीवृन्द को आदेश ****** किसी एक दिन का प्रसंग है भावार्थ - उस काल, उस समय राजगृह नामक नगर था। नगर विषयक वर्णन औपपातिक सूत्र से योजनीय है । वहाँ ( उस नगर के बहिर्भाग में) गुणशील नामक चैत्य था । उस राजगृह नगर में श्रेणिक नामक राजा था। राजा का वर्णन औपपातिक की तरह ग्राह्य है यावत् वह चेलणा महारानी के साथ सांसारिक भोग भोगता हुआ यावत् सुखपूर्वक रहता था । राजा श्रेणिक ने स्नान किया । नित्य नैमित्तिक मंगलाचार तथा दोषनिवारण प्रायश्चित्तादि कृत्य संपादित कर गले में माला धारण की। अनेकविध मणिरत्न निर्मित हार, अर्द्धहार, तीन लड़ों के हार, लटकते हुए झूमके युक्त कटिसूत्र आदि धारण कर शोभित हुआ। कंठहार, अंगूठियाँ आदि धारण कर यावत् कल्पवृक्ष की तरह शोभायमान हुआ। कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र धारण किए हुए राजा यावत् चन्द्रमा की तरह देखने में आनंदप्रद नृपति जहाँ बाह्य उपस्थानशाला (सभा भवन ) थी, जहाँ सिंहासन था, वहाँ आया और (उस) उत्तम सिंहासन पर पूर्वाभिमुख होकर बैठा एवं कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया - Jain Education International तथा इस प्रकार कहा । विवेचन - ऊपर के पाठ में आये हुए “कयबलिकम्मे " शब्द का अर्थ "स्नान संबंधी विधि पूर्ण की" ऐसा समझना चाहिए । राजा श्रेणिक द्वारा अधिकारीवृन्द को आदेश - गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! जाई इमाइं रायगिहस्स णयरस्स बहिया तंजहाआरामाणि य उज्जाणाणि य आएसणाणि य आययणाणि य देवकुलाणि य सभाओ य पवाओ य पणियगिहाणि य पणियसालाओ य छुहाकम्मंताणि य वाणियकम्मताणि कम्ताणि य इंगालकम्मंताणि य वणकम्मंताणि य दब्भकम्मंताणि य जे त(त्थेव )त्थ महत्तरगा अण्णया चिट्ठति ते एवं वयहकठिन शब्दार्थ - गच्छह - जाओ, आरामाणि भ्रमण योग्य उपवन, उज्जाणाणिविश्रामगृह ( धर्मशाला), देवकुलाणि - देवायतन, पवाओ जल प्रतिष्ठान, पणियगिहाणि हट्टशाला, पणियसालाओ क्रय-विक्रय केन्द्र, छुहाकम्मंताणि भोजनशाला या चूने का कारखाना, कट्ठकम्मंताणि - काष्ठशाला, वाणियकम्ताणि वाणिज्यकर्मशाला व्यापार केन्द्र, इंगालकम्मताणि कोयला घर, वणकम्मंताणि प्रपा - १०९ For Personal & Private Use Only *********** - - - - - www.jainelibrary.org
SR No.004177
Book TitleTrini Ched Sutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages538
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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