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दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र - सप्तम दशा
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को कुछ संकुचित कर, दोनों हाथों को जानुपर्यन्त लम्बाकर ( कायोत्सर्ग में) स्थित रहे। शेष वर्णन पूर्ववत् है । इस प्रतिमा का पालन करने वाला साधक यावत् भगवान् की आज्ञा का आराधक होता है।
एकारात्रिकी भिक्षुप्रतिमा
गराइ भिक्खुपडिमं पडिवण्णस्स अणगारस्स णिच्चं वोसट्टकाए णं जाव अहियासेइ, कप्पइ से [णं ] अट्ठमेणं भत्तेणं अपाणएणं बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा ईसिं पब्भारगएणं कारणं एगपोग्गल[ ठिती ]गयाए दिट्ठीए अणिमिसणयणे अहापणिहिएहिं गाएहिं सव्विंदिएहिं गुत्तेहिं दोवि पाए साहट्टु वग्घारियपाणिस्स ठाणं ठाइत्तए, तत्थ से दिव्वा माणुस्सा तिरिक्खजोणिया जाव अहियासेइ, से णं तत्थ उच्चारपासवणं उब्बाहिज्जा णों से कप्पइ उच्चारपासवणं उत्तिए, कप्पड़ से पुव्वपडिलेहियंसि थंडिलंसि उच्चारपासवणं परिट्ठवित्तए, अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए ॥ ३१ ॥
एगइयं भिक्खुपडिमं अणणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा अहियाए असुभाए अक्खमाए अणिस्सेसाए अणाणुगामियत्ता भवंति, तंजहा - उम्मायं वालभेजा, दीहकालियं वा रोगायंकं पाउणेज्जा, केवलिपण्णत्ताओ धम्माओ भंसेज्जा ॥ ३२ ॥
एगराइयं णं भिक्खुपडिमं सम्मं अणुपालेमाणस्स अणगारस्स इमे तओ ठाणा हियाए सुहाए खमाए णिस्सेसाए अणुगामियत्ताए भवंति, तंजहा - ओहिणाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, मणपज्जवणाणे वा से समुप्पज्जेज्जा, केवलणाणे वा से असमुप्पण्णपुळे समुप्पज्जेज्जा, एवं खलु एसा एगराइया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं अहासम्मं कारण फासित्ता पालित्ता सोहित्ता तीरित्ता किट्टित्ता आराहित्ता आणा अणुपालित्ता [ यावि ] भवइ ॥ ३३ ॥
याओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खुपडिमाओ पण्णत्ताओ ॥ ३४ ॥ त्तिबेमि ||
॥ इति भिक्खुपडिमा णामं सत्तमा दसा समत्ता ॥ ७ ॥
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