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प्रतिक्रमण - तेतीस बोल का पाठ
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समाधान - शास्त्रोक्त समय पर स्वाध्याय या प्रतिलेखना न करना, शास्त्र निषिद्ध समय पर करना, स्वाध्याय एवं प्रतिलेखना पर श्रद्धा न करना तथा इस संबंध में मिथ्या प्ररूपणा करना या उचित विधि से न करना, इत्यादि रूप में स्वाध्याय और प्रतिलेखना संबंधी जो अतिचार-दोष लगे हों, उनसे मुक्त होने के लिये स्वाध्याय और प्रतिलेखन दोष निवृत्ति का (चाउक्काल सज्झायस्स का) पाठ बोलना आवश्यक है।
पाठ में आये अइक्कमे आदि शब्दों के अर्थ इस प्रकार हैं - १. अइक्कमे (अतिक्रम) - अकृत्य सेवन का भाव। २. वइक्कमे (व्यतिक्रम) - अकृत्य सेवन की सामग्री मिलाना। ३. अइयारे (अतिचार) - अकृत्य सेवन में गमनादि रूप प्रवृत्ति करना। . ४. अणायारे (अनाचार) - अकृत्य का सेवन करना। सर्वथा या अधिकांश में व्रत . भंग कर देना। .
प्रश्न - इस पाठ में - 'अनाचार' का 'मिच्छामि दुक्कर्ड' क्यों दिया है? अन्य पाठों में तो अतिचार' का ही 'मिच्छामि दुक्कड दिया जाता है?
उत्तर - अहिंसादि महाव्रत रूप मूलगुणों में अतिक्रम, व्यतिक्रम तथा अतिचार के कारण मलिनता आती है अर्थात् चारित्र का मूलगुण दूषित होता है परन्तु सर्वथा नष्ट नहीं होता। अतः उसकी शुद्धि आलोचना एवं प्रतिक्रमण के द्वारा करने का विधान है। परन्तु मूलगुणों में जानते अनजानते अनाचार का दोष लग जाय तो अन्य प्रायश्चित्त से शुद्धि होती है। .. उत्तरगुणों में अतिक्रम आदि चारों ही दोषों से चारित्र में मलिनता आती है। परन्तु पूर्णतः चारित्र भंग नहीं होता है। . स्वाध्याय और प्रतिलेखना उत्तरगुण है अतः प्रस्तुत काल प्रतिलेखना सूत्र के द्वारा अतिक्रम आदि चारों दोषों का प्रतिक्रमण किया जाता है। -
तेतीस बोल का पानी - अतिचार, संक्षेप में एक प्रकार का और विस्तार से दो, तीन आदि तथा आत्म-अध्यवसाय से संख्यात असंख्यात यावत् अनन्त प्रकार का है उनमें से एक आदि भेद का कथन करते हैं- पडिक्कमामि.एगविहे असंजमे। पडिक्कमामि दोहिं बंधणेहि-राग बंधणेणं दोस बंधणेणं। पडिक्कमामि तिहिं दंडेहि - मणदंडेणं, वयदंडेणं, कायदंडेणं।
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