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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
कक्कराइए - कर्करायित - कुड़कुडाना। शय्या के दोष कहते हुए बड़बड़ाना, शय्या विषम हो या कठोर हो साधक को समता एवं शांति के साथ उसका सेवन करना चाहिये। . ___ इत्थीविष्परियासियाए - स्त्री विपर्यास से - संयम विरुद्ध प्रवृत्ति से - स्वप्न में स्त्रीसंग किया हो।
दिद्विविपरियासियाए - दृष्टि विपर्यास से - स्वप्न में स्त्री को अनुराग दृष्टि से देखा हो। .
मणविपरियासियाए - मन के विपर्यास से - स्वप्न में मन के अंदर विकार आया . हो या मन दूषित हुआ हो।
पाणभोयणविपरियासियाए - पान और भोजन के विपर्यास से - स्वप्नदशा में रात्रि में भोजन पानी की इच्छा की हो या भोजन पान किया हो। ... इस प्रकार शयन संबंधी अतिचारों का प्रतिक्रमण कह कर अब गोचरी के अतिचार संबंधी प्रतिक्रमण कहते हैं -
- गोचरचर्या सूत्र
(भिक्षा दोष निवृत्ति का पाठ) पडिक्कमामि गोयरचरियाए भिक्खायरियाए उग्घाड-कवाड-उग्घाडणाए, साणा-वच्छा-दारा संघट्टणाए, मंडीपाहुडियाए, बलिपाहुडियाए, ठवणापाहुडियाए, संकिए, सहसागारे, अणेसणाए, पाणभोयणाए, बीयभोयणाए, हरियभोयणाए, पच्छाकम्मियाए, पुरेकम्मियाए, अदिट्ठहडाए, दगसंसट्ठहडाए, रयसंसट्ठहडाए, परिसाडणियाए, परिढावणियाए, ओहासणभिक्खाए, जं उग्गमेणं उप्पायणेसणाए, अपरिसुद्धं परिग्गहियं परिभुत्तं वा जं न परिद्ववियं, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कडं। ___ कठिन शब्दार्थ - गोयरचरियाए - गोचर चर्या में, भिक्खायरियाए - भिक्षाचर्या में, उग्घाड - अधखुले, कवाड - किवाड़ों को, उग्घाडणाए - खोलने से, साणा - कुत्ते, वच्छा - बछड़े, दारा - बच्चों का, संघट्टणाए. - संघट्टा करने से, लांघने से, मंडी - अग्रपिण्ड की, पाहुडियाए - भिक्षा से, बलि - बलिकर्म की, ठवणा - स्थापना, संकिए -
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