________________
४८
आवश्यक सूत्र - तृतीय अध्ययन
किसी भी मिथ्या भाव से, मन से, दुष्ट विचार से, दुर्वचन से, शरीर की दुष्ट चेष्टाओं से क्रोध, मान, माया, लोभ से सर्व काल में की हुई सब मिथ्या आचरणों से पूर्ण क्षमादि सभी धर्मों का अतिक्रमण करने वाली ३३ आशातनाओं में से दिवस संबंधी किसी भी आशातना से मुझे जो कोई अतिचार दोष लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ, निंदा करता हूँ, गर्दा करता हूँ, इस प्रकार पाप-व्यापारों से आत्मा को अलग करता हूँ।
विवेचन - वंदना का तीन भेद हैं - १. सामान्य (जघन्य, लघु) वंदना २. मध्यम वंदना और ३. उत्कृष्ट वंदना।
१. सामान्य वंदना - जब गुरु महाराज या संत-सतियाँ विहार करके पधार रहे हो ... अथवा गोचरी या स्थंडिल भूमिका जा रहे हो अथवा आ रहे हो अर्थात् मार्ग में चल रहे हों तब सिर्फ 'मत्थएण वदामि' कह कर ही वंदन करना चाहिए। इसको सामान्य वंदना कहते हैं।
२. मध्यम वंदना - जब गुरुदेव यथास्थान विराजे हुए हों तब 'तिक्खुत्तो' का पाठ पूरां बोल कर वंदना करनी चाहिए। इसको मध्यम वंदना कहते हैं।
३. उत्कृष्ट वंदना - 'इच्छामि खमासमणो' का पाठ बोल कर जो वंदना की जाती है उसको उत्कृष्ट वंदना कहते हैं। ___गुरु वंदना पूर्वक ही प्रतिक्रमण करने का शिष्टाचार होने से इस तृतीय अध्ययन में उत्कृष्ट गुरु वंदना का पाठ दिया है। द्वादशावर्त वंदन, उत्कृष्ट वंदन है।
समवायांग सूत्र के बारहवें समवाय अनुसार द्वादशावर्त - गुरु वन्दन सूत्र (खमासमणो का पाठ) की बारह आवर्त सहित पच्चीस आवश्यक की विधि इस प्रकार है -
खमासमणो (द्वादशावर्त वंदन) विधि ___ गुरु महाराज को वन्दन करने के लिये तथा उनके प्रति हुई आशातना की क्षमा याचना के लिये द्वादशावर्त्त गुरु वन्दन सूत्र बोला जाता है। इसका दूसरा नाम कृतिकर्म भी है । जिसका वर्णन समवायांग सूत्र के बारहवें समवाय में है। इसमें बारह आवर्तन युक्त पच्चीस आवश्यक होते हैं। गाथा इस प्रकार है -
दुओणयं जहाजार्य, किड़कम बारसावयं । चउसिरं तिगुत्तं च, दुपवेर्स एग णिक्खमणं ॥ अर्थ - दो अवनत (झुकना), एक यथाजात, बारह आवर्त्त, चार मस्तक, तीन गुप्तियाँ,
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org