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आवश्यक सूत्र - परिशिष्ट तृतीय
IIIIIII.me ...... भावावश्यक - इसके दो भेद हैं - १. आगम से भाव आवश्यक २. नो आगम से भाव आवश्यक।
१. आगम से भाव आवश्यक - जिसने आवश्यक इस सूत्र के अर्थ का ज्ञान किया है और उपयोग सहित है। उसको आगम से भावावश्यक कहते हैं।
२. नो आगम से भावावश्यक -- इसके तीन भेद होते हैं -
१. लौकिक नो आगम से भावावश्यक - जो लोग पूर्वाह्न (प्रभात समय) में उपयोग सहित महाभारत और अपराह्न (दोपहर बाद) में उपयोग सहित रामायण को बांचे तथा श्रवण करे।
२. कुप्रावचनिक नो आगम से भावावश्यक - जो ये पूर्वोक्त चरक, चीरिक यावत् पाखंड मार्ग में चलने वाले यथावसर "इज्जंजलिहोमजपोन्दरुक्कणमोक्कारमाइयाई भावावस्सयाई करेंति से तं कुप्पावणियं भावावश्ययं॥'
अर्थात् - यज्ञ विषय जलांजलि को देना अथवा संध्यार्चन समय जलांजलि को देना या देवी के सम्मुख हाथ जोड़ना। अग्नि हवन करना, मंत्रादि का जप करना, देवतादि के सम्मुख वृषभवत् शब्द करना, नमो भगवते दिवस नाथाय इत्यादि नमस्कार करना आदि। ये पूर्वोक्त कृत्य जो भाव से उपयोग सहित करे। यह कुप्रावचनिक नो आगम से भावावश्यक है।
३. लोकोत्तर नो आगम से भावावश्यक - "जण्णं इमे समणे वा समणी वा सावओ वा साविओ वा तच्चित्ते, तम्मणे, तल्लेसे, तदज्वसिए, तत्तिव्वज्झवसाणे, तदट्ठोवउत्ते, तदप्पियकरणे, तब्भावणाभाविए, अण्णत्थ कत्थइ मणं अकरेमाणे उभओकाल आवस्सय करेंति से तं लोगुत्तरिों भावावास्सयं।"
। अर्थात् - जो ये शान्त स्वभाव रखने वाले साधु, साध्वी, साधु के समीप जिनप्रणीत समाचारी को सुनने वाले श्रावक, श्राविका, उसी आवश्यक में सामान्य प्रकार से उपयोग सहित चित्त को रखने वाले, उसी आवश्यक में विशेष प्रकार से उपयोग सहित मन को रखने वाले, उसी आवश्यक में शुभ परिणाम रूप लेश्या वाले। तच्चित्तादि भावयुक्त उसी आवश्यक की विधिपूर्वक क्रिया करने के अध्यवसाय वाले, उसी आवश्यक में प्रारंभकाल से लेकर प्रतिक्षण चढ़ते-चढ़ते प्रयत्न विशेष के अध्यवसाय रखने वाले, उसी आवश्यक के अर्थ के विषय में उपयोग सहित (तीव्रतर वैराग्य को रखने वाले), उसी आवश्यक में सब इन्द्रियों को
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