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आवश्यक सूत्र परिशिष्ट द्वितीय
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(२)
श्रमण सूत्र ( निद्रादोष निवृत्ति आदि पाठ ) जिनको याद न हों वे प्रतिक्रमण इस प्रकार कर सकते हैं
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चवीसत्थव करने के बाद गुरु के सम्मुख या पूर्व उत्तर- दिशा में मुँह करके 'गुरु वन्दन सूत्र' से तीन बार वन्दन करके प्रतिक्रमण करने की आज्ञा लेवें। प्रतिक्रमण में 'इच्छामि णं भंते' का पाठ और 'नमस्कार सूत्र' बोलें फिर प्रथम आवश्यक की आज्ञा लेकर खड़े
रह कर
१. प्रतिज्ञा सूत्र (करेमि भंते ), इच्छामि ठामि, उत्तरीकरण सूत्र ( तस्स उत्तरी का पाठ) बोलकर कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित होकर कायोत्सर्ग करें । कायोत्सर्ग में ९९ अतिचार ( आगमे तिविहे, दर्शन सम्यक्त्व, बारह व्रतों के अतिचार, छोटी संलेखना ) व अठारह पाप का चिन्तन करें। सब पाठों के अन्त में 'तस्स मिच्छामि दुक्कडं' के स्थान पर 'तस्स आलोउं' कहें, 'णमो अरहंताणं' कहकर काउस्सग्ग पारें । काउस्सग्ग शुद्धि का पाठः बोल कर पहला आवश्यक समाप्त करें। दूसरे आवश्यक की आज्ञा लेवें ।
२. दूसरे आवश्यक में एक चतुर्विंशतिस्तव सूत्र प्रकट कहें। फिर तीसरे आवश्यक की आज्ञा लेवें ।
३. तीसरे आवश्यक में द्वादशावर्त्त गुरु वन्दन सूत्र (इच्छामि खमासमणो ) का पाठ दो बार बोलें । (खमासमणो की पूरी विधि पृष्ठ ४८-५० पर देखें ।) फिर चौथे आवश्यक की आज्ञा लेवें ।
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४. 'श्रावक सूत्र' करने वाले खड़े होकर ९९ अतिचार के पाठों - (आगमे तिविहे, दर्शन सम्यक्त्व, बारह व्रतों के अतिचार छोटी संलेखना) समुच्चय का पाठ व अठारह पाप प्रकट कहें फिर 'तस्स सव्वस्स' का पाठ बोल कर तीन बार वन्दना कर श्रावक सूत्र की आज्ञा लें और दाहिना घुटना खड़ा रख कर बैठे । फिर एक नमस्कार सूत्र, प्रतिज्ञा सूत्र, चत्तारि मंगलं, इच्छामि ठामि का पाठ, इच्छाकारेणं, आगमे तिविहे, दंसण समकित और बारह व्रतों के अतिचार सहित सम्पूर्ण पाठ कहें। तत्पश्चात् पालखी आसन से बैठकर
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★ " इच्छामि ठामि काउस्सग्गं" के स्थान पर " इच्छामि पडिक्कमिउं" बोलें।
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