SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रावक आवश्यक सूत्र - बारह व्रतों के अतिचार २१३ गुणव्रत तीन हैं - १. दिशा परिमाण व्रत २. उपभोग परिभोग परिमाण व्रत ३. अनर्थ दण्ड विरमण व्रत। शिक्षावत - कर्म क्षय की शिक्षा देने वाले व्रतों को या मोक्ष प्राप्ति के लिए अभ्यास कराने वाली क्रियाओं की शिक्षा देने वाले व्रतों को शिक्षा व्रत कहते हैं । शिक्षाव्रत चार है - १. सामायिक व्रत २. देशावकाशिक व्रत ३. पौषध व्रत ४. अतिथि संविभाग व्रत । अकथ्यो, अकरणिजो (अंकल्पनीय व अकरणीय) - श्रावकाचार के विरुद्ध आचरण करना "अकल्पनीय" है तथा अयोग्य सावध आचरण करना "अकरणीय" है। इस प्रकार अकल्पनीय में अकरणीय का समावेश हो सकता है। पर अकल्पनीय का समावेश अकरणीय में नहीं होता। ___ खंडियं विराहियं (खंडित विराधित) - व्रत का एकांश भंग खंडित और सर्वांश (अधिक मात्रा में) भंग विराधित कहलाता है। ____ "मिच्छामि दुक्कडं" का अर्थ है - द्रव्य भाव से नम्र बन कर, चारित्र की मर्यादा में स्थिर रह कर किये हुए पापों को उपशम भाव से दूर करता हूँ एवं मेरा पाप निष्फल हो। . बारह व्रतों के अतिचार ... पहला व्रत - स्थूल प्राणातिपात विरमण में जो कोई अतिचार लगा हो, तो आलोऊं - १. रोष वश कठोर (गाढ़ा) बन्धन से बांधा हो, २. क्रूरता पूर्वक मारपीट की हो (गाढ़ा घाव घाला हो), ३. शरीर के किसी अवयव का छेद किया हो, ४. अधिक भार भरा हो, ५. आहार-पानी बन्द किया हो, इस प्रकार दिवस सम्बन्धी ७ अतिचार-दोष लगा हो तो तस्स आलोडं (तस्स मिच्छामि दुक्कडं)। दूजा व्रत - स्थूल मृषावाद विरमण में जो कोई अतिचार लगा हो, तो प्रतिदिन शाम के प्रतिक्रमण में "दिवस सम्बन्धी" सुबह के प्रतिक्रमण में "रात्रि सम्बन्धी" पाक्षिक प्रतिक्रमण में "दिवस पक्ष सम्बन्धी", चौमासी प्रतिक्रमण में "चातुर्मास सम्बन्धी" और संवत्सरी प्रतिक्रमण में "संवत्सर सम्बन्धी" बोलना चाहिए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004176
Book TitleAavashyak Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2007
Total Pages306
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy