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श्रमण आवश्यक सूत्र १२५ अतिचारों का समुच्चय पाठ
१०९. णासणे ( अनासन्न)
वहाँ परिस्थापन करना 'अनासन्न' है।
११०. बिलवज्जिय (बिलवर्जित) - जहाँ चूहे आदि के बिल न हो वहाँ परिस्थापन करना 'बिल वर्जित' है ।
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१११. तसपाणबीयर हिय ( त्रस प्राण बीज रहित ) जहाँ द्वीन्द्रियादि त्रसप्राणी तथा बीज और उपलक्षण से सभी एकेन्द्रिय स्थावर प्राणी न हो, वहाँ परिस्थापन करना त्रस प्राण बीज रहित है।
उपरोक्त दस बोलों को नहीं वर्जकर परठने से अतिचार लगते हैं । गुप्ति के नौ अतिचार
मनोगुप्ति के तीन अतिचार -
११२. मणं संरंभ - 'मैं इसे परितापना दूँ या मारूँ' ऐसा मानसिक संक्लिष्ट (अशुभ) ध्यान करना मन का संरंभ है।
जहाँ ग्राम, नगर, आराम, उद्यान आदि निकट न हो
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११३. मणं संभारंभ किसी प्राणी को मानसिक संक्लिष्ट (अशुभ) ध्यान द्वारा परिताप देना मन का समारंभ है।
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११४. मणं आरंभ - किसी प्राणी को मानसिक संक्लिष्ट (अशुभ) ध्यान द्वारा मार देना मन का आरंभ है।
वचन गुप्ति के तीन अतिचार
११५. व्य संरंभ - 'मैं इसे परितापना दूंगा या मारूंगा' वाणी से ऐसा संक्लिष्ट (अशुभ) शब्द बोलनां ।
११६. व्य समारंभ - किसी प्राणी को वाणी से संक्लिष्ट (अशुभ) मंत्र जाप आदि के द्वारा परितापना देना वचन का समारंभ है।
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११७. वय आरंभ - किसी प्राणी को वाणी से संक्लिष्ट (अशुभ) मंत्र जाप द्वारा "मार देना वचन का आरंभ है।
काय गुप्ति के तीन अतिचार
११८. कार्य संरंभ - किसी प्राणी को परिताप देने या मारने के लिए हाथ या शस्त्र आदि उठाना काया का संरंभ है।
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