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आवश्यक सूत्र - चतुर्थ अध्ययन
अनुराग और प्रेम का मधुर भाव रखना, क्षमा धर्म की उत्कृष्ट विशेषता है। क्षमा के बिना मानवता पनप ही नहीं सकती।
प्रतिक्रमण अध्ययन की समाप्ति पर प्रस्तुत क्षामणा सूत्र पढ़ते समय जब साधक दोनों हाथ जोड़ कर क्षमायाचना करने के लिए खड़ा होता है, तब कितना सुंदर शांति का दृश्य होता है? अपने चारों ओर अवस्थित संसार के समस्त छोटे-बड़े प्राणियों से गद्गद् होकर क्षमा मांगता हुआ साधक वस्तुत: मानवता की सर्वोत्कृष्ट भूमिका पर पहुंच जाता है।
शंका - 'सव्वे जीवा खमंतु मे क्यों कहा जाता है? सब जीव मुझे क्षमा करें, इसका क्या अभिप्राय है? वे क्षमा करें या न करें, हमें इससे क्या? हमें तो अपनी ओर से क्षमा मांग लेनी चाहिये।
समाधान - प्रस्तुत पाठ में करुणा का अपार सागर तरंगित हो रहा है। कौन जीव कहां है? कौन क्षमा कर रहा है? कौन नहीं। कुछ पता नहीं। फिर भी अपने हृदय की करुणा भावना है कि मुझे सब जीव क्षमा कर दें। क्षमा कर दें तो उनकी आत्मा भी क्रोध निमित्तक कर्मबंध से मुक्त हो जाय।
जो साधक दृढ़ होगा, आत्मार्थी होगा, जीवन शुद्धि की ही चिंता रखता होगा, वही आलोचना के दुर्गम पथ पर अग्रसर हो सकता है।
निंदा का अर्थ है - आत्म साक्षी से अपने पापों की आलोचना करना। पश्चात्ताप करना। गर्हा का अर्थ है - पर की साक्षी से अपने पापों की बुराई करना।
जुगुप्सा का अर्थ है - पापों की प्रति पूर्ण घृणा भाव व्यक्त करना। जब तक पापाचार के प्रति घृणा न हो, तब तक मनुष्य उससे बच नहीं सकता। पापाचार के प्रति उत्कृष्ट घृणा रखना ही पापों से बचने का एक मात्र अस्खलित मार्ग है। अत: आलोचना, निंदा, गर्दा और जुगुप्सा के द्वारा किया जाने वाला प्रतिक्रमण ही सच्चा प्रतिक्रमण है। .
|| चौथा अध्ययन समाप्त॥
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