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________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण किन्तु इनके साध्वी सम्प्रदाय का क्रमबद्ध इतिहास संवत् 1910 के लगभग हुई प्रवर्तिनी श्री खेतांजी का मिलता है। कोटा सम्प्रदाय में श्री बड़ाकंवर जी का 52 दिन का संथारा प्रसिद्ध है। जनश्रुति हैं कि संथारे में 52 दिन ही नाग उनके दर्शन करने आता रहा। प्रवर्तिनी श्री मानकंवर जी विदर्भसिंहनी थीं, ये 45 शिष्या प्रशिष्याओं की संयमदात्री थीं। उपप्रवर्तिनी श्री सज्जनकुंवर जी ने डूंगला ग्राम के बाहर नवरात्रि पर होने वाली घोर पशुबलि को अपनी ओजस्वी वाणी से बंद करवाया था। प्रवर्तिनी प्रभाकंवर जी अनेक श्रमण श्रमणियों की संयम प्रेरिका आग्रमज्ञा साध्वी हैं। आचार्य हुक्मीचन्द्र जी महाराज की सम्प्रदाय में श्री रंगूजी विशिष्ट व्यक्तित्त्व की धनी साध्वी थीं। प्रवर्तिनी श्री रत्नकंवर जी आदर्श त्यागिनी थीं। श्री नानूकंवरजी चातुर्मास के 120 दिन में 5-7 दिन ही आहार ग्रहण करती थीं, उन्होंने दीक्षा के पूर्व कुष्ठ रोग से मृत्यु प्राप्त अपने पति की स्वयं अन्त्येष्टी क्रिया की थी। प्रवर्तिनी श्री आनन्दकंवर जी इतनी करूणामूर्ति थी, कि अपनी जान की परवाह किये बिना जीवदया के अनेक कार्य किये। घोर तपस्विनी श्री बरजूजी ने 82 दिन के उपवास कठोर कायक्लेश करते हुए किये थे। 28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004174
Book TitleJain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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