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________________ जैन श्रमणी परम्परा : एक सर्वेक्षण मोक्षज्ञाश्री जी, श्री चिद्वर्षाश्री जी आदि कुछ साध्वियाँ तो तप की जीती जागती प्रतिमा ही नजर आती हैं। श्री रंजनाश्री जी महान शासन प्रभाविका साध्वी हैं, इन्होंने सम्मेदशिखर जैसे विशाल तीर्थ का जीर्णोद्धार कर अपना नाम अमर कर दिया, तीर्थ स्थान पर इनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई हैं। साहित्यिक क्षेत्र में अपना प्रशंसनीय योगदान देने वाली सूर्य शिशु श्री मयणाश्री जी एवं इनकी तीन शिष्याएँ विशुद्ध प्रज्ञा सम्पन्न शतावधानी श्रमणियाँ हैं । इसी प्रकार मासक्षमण आराधिका 27 शिष्याओं की गुरूमाता श्री त्रिलोचना श्री जी, आशु कवयित्री प्रवर्तिनी श्री लक्ष्मीश्री जी, प्रकृष्ट तपस्विनी श्री देवेन्द्र श्री जी, संस्कृत प्राकृत काव्य न्याय व्याकरण आदि की ज्ञाता विदुषी निरंजनाश्री जी साहस व संकल्प की धनी प्रवर्तिनी रोहिणा श्री जी, महान धर्म प्रभाविका प्रवर्तिनी श्री बसन्तप्रभाश्री जी, श्री सौभाग्यश्री जी, प्रखरबुद्धि सम्पन्ना शतावधानी डॉ. श्री निर्मला श्री जी आदि तपागच्छ की महान विदुषी श्रमणियाँ हैं। तपागच्छ की ही प्रवर्तिनी देवश्री जी पंजाब की धरती पर दीक्षित होने वाली सर्वप्रथम श्रमणी एवं विशाल गच्छ की अधिनायिका थीं। पाकिस्तान से भारत आने वाली जैन समाज पर इनका उपकार 13 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004174
Book TitleJain Shramani Parampara Ek Sarvekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayshree Sadhvi
PublisherBharatiya Vidya Pratishthan
Publication Year
Total Pages54
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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