SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भूमिका : यह है दिगम्बर जैन मंदिर भेलूपुर का इतिहास। इस मन्दिर व साथ के परिसर मे स्थित धर्मशालये बनाने में ई. सन १६८८ से ई. सन् १९६५ तक ७५ लाख रूपया व्यय हो चुका है। अब बीस से २५ दिसम्बर १६६६ को मन्दिर के प्रमुख दरवाजे के सामने से थोड़ा दाँये तरफ' निर्मित मान स्तम्भ का पंचकल्याणयक महोत्सव मनाया जा रहा है। मन्दिर व धर्मशाला निर्माण हेतु धन दिगम्बर जैन समाज काशी ने लगाया। केवल मात्र रू. २५,०००।उत्तरांचल तीर्थ क्षेत्र कमेटी से प्राप्त हुआ था। दानशीलता का उत्कृष्ट नमूना है यह। - दुमंजिले पर स्थित मन्दिर मानस्तम्भ व धर्मशाला कोई कला निधि ना भी हो परन्तु भवन की महानता के साथ-साथ इसका महान इतिहास है। इसका इतिहास भारत के दूसरे जैन मन्दिारों से भिन्न व अनूठा है। ई. पूर्व ७७ में भगवान पार्श्वनाथ का जन्म काशी में हुआ। हमारे गुरू एवं समाज अर्से से ऐसा मानती आई है कि यह मन्दिर उनके जन्म स्थान पर निर्मित है। किन्तु हमें तो इस कथन को यहाँ के ईट पत्थरों से सुनना है।। बनारस में दिगम्बर जैन मन्दिरों का निर्माण उपलब्ध दिगम्बर जैन मंदिरो का इतिहास १८५६ ई. से प्रारम्भ होता है। बनारस के रहने वाले लाला प्रभूदास आरा रहने लगे व उन्होंने चन्द्रपरी व भदेनी घाट में मंदिरों का निर्माण किया। उनके पुत्र बाबू देव कुमार ने १८५६ में प्रतिष्ठा कराई '। . ई. सन् १८६८ में एक नये सितारे का उदय हुआ। श्री खड्गसेन उदयराज ने न्याययलय में खड्ग उठाई। प्रहार किया महाराज विजयनगरम् की रियासत पर। उन्होंने मुकदमा लड़ा व जीत गये । महाराज से भूमि प्राप्त हो गई व उन्होंने एक नया जन्मभूमि मंदिर भेलूपुर में निर्मित किया। उनके तर्क क्या थे जिसके कारण महाराज को भूमि देनी पड़ी यह अवश्य रोचक विषय है परन्तु इस लेख के लेखक को उस मुकदमे का कुछ भी विवरण उपलब्ध न हो सका। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004173
Book TitleDigambar Jain Parshwanath Janmabhumi Mandir Bhelupur Varanasi ka Aetihasik Parichay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyendra Mohan Jain
PublisherDevadhidev Shree 1008 Parshwanath Manstambh Panch Kalyanak Mohatsav Samiti Bhelupur
Publication Year
Total Pages30
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy