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२- पार्श्वनाथ की खण्डित प्रतिमा ( चित्र ८) को उपरोक्त वर्णन में ५ वी या ६ वी शताब्दी ई. की कही गई है । इस मूर्ति के ऊपर के सप्तफनी सर्प के छत्र का आधा भाग भी यहाँ उपलब्ध है जो चित्र ६ पर है । दूसरी तरफ की फणावली खण्डित है। इस फणावली के ऊपर जो देव बने है वह चित्र १० पर है । यह देव फणावली के देव धरणेन्द्र के सहयोग से पार्श्व प्रभू की सेवारत लगते हैं, उपसर्ग मुद्रा में नही हैं । इस प्रकार तीर्थकारों के साथ मालाधारी व्योमचारी देव प्रदर्शित होते हैं इस कारण इसे भी मालाधारी देव माना जाना चाहिए ।
एक मस्तक, जिसकी उँचाई २४ से.मी. गले के साथ है, भी यहाँ पर उपलब्ध है जो चित्र ११ पर दिखाया है । पद्मासन मूर्ति के धड़ की ऊंचाई ६२ से.मी. है एवं मूर्ति की चौड़ाई ८० से. मी. है । यह मस्तक अनुपात के हिसाब से इसी मूर्ति का लगता है । इसके मस्तिष्क पर दो खड़ी धारियाँ इस प्रकार बनाई गयी हैं, जैसे त्रिनेत्र हो । जैन सिद्धान्त में तीर्थंकर के त्रिनेत्र होने की मान्यता नहीं है यह शिव का अनुकरण है 1.
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इस मूर्ति हेतू देवकुलिका के भाग भी यहाँ प्राप्त हैं । चित्र १२ पर देवकुलिका के सामने व ऊपर का पत्थर है । इसकी चौड़ाई ८७ से.मी. है, जबकि मूर्ति की चौड़ाई ८० से. मी. है। चित्र १३ पर देवकुलिका के पीछे का ऊपर का पत्थर है । इस पर सफेद चूने का लेप स्पष्ट है चित्र १४ में इन दोनो के ऊपर का पत्थर है । इसकी चौड़ाई ६१ से.मी. है । इस प्रकार इस मूर्ति का स्पष्ट आकलन सम्भव है । इस मूर्ति के वक्ष स्थल पर श्रीवत्स का स्थान खण्डित नहीं है। वह श्रीवत्स रहित है । इन सब बातों से अनुमान है कि यह मूर्ति भी उपरोक्त स्तम्भ के समान लगभग चौथी शताब्दी की होनी चाहिए । यह मूर्ति इस मन्दिर की मुख्य मूर्ति रही है । इसकी कुल ऊँचाई लगभग १४० से. मी. एवं पद्मासन भगवान की ऊंचाई ८८ से.मी. रही है ।
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३- यहाँ से एक और पद्मासन में छोटी मूर्ति प्राप्त हुई जिसे चित्र १५ पर देखा जा सकता है । यह कटिप्रदेश के ऊपर खण्डित एवं विलुप्त है । इस मूर्ति की चौड़ाई केवल १५ से. मी. है । चित्र १६ पर एक देवकुलिका का शीर्ष भाग दिखाई दे रहा है जिसकी चौड़ाई २५ से. मी. है । लगता है इस देवकुलिका में यह मूर्ति विराजमान थी । देवकुलिका एवं मूर्ति को देखकर इसे प्रमुख मूर्ति के समय का अर्थात चौथी शताब्दी ई. का अनुमान है ।
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