________________
7. सज्जन व्यक्ति क्रोध नहीं करता है, यदि (वह) क्रोध भी करता
है, (तो) अनिष्ट नहीं सोचता है, यदि (वह अनिष्ट) सोचता है, (तो) (अनिष्ट) नहीं बोलता है, यदि (वह अनिष्ट) बोलता है, (तो) लज्जा-युक्त होता है।
8. (सच है कि) मिले हुए (सज्जन व्यक्ति) (हमारे) दुःख को
हरते हैं, बोलते हुए (वे) (हमको) सभी सुख देते हैं, विधि द्वारा यह शुभ (कार्य) किया गया है कि जगत में सज्जन व्यक्ति (उसके द्वारा) बनाए गए हैं।
9. (सज्जन पुरुष) दूसरे पर नहीं हँसते हैं, (वे) निज की प्रशंसा
नहीं करते हैं, (वे) सैंकड़ों प्रिय (बातें) बोलते हैं, यह सज्जन का स्वभाव है। उन (सज्जन) पुरुषों को बार बार ननस्कार ।
0. (दूसरे के द्वारा अपना) प्रिय (भला) किया जाने पर तथा
(दूसरे के द्वारा अपना) प्रिय (भला) नहीं किया जाने पर भी जगत में (दूसरे का) प्रिय (भला) करते हुए (लोग) देखे जाते हैं । किन्तु (दूसरे के द्वारा अपना) अप्रिय (बुरा) किया जाने पर भी (जो) (दूसरे का) प्रिय (भला) करते हैं, वे सज्जन दुर्लभ हैं।
1. हे सज्जन ! (तुम) कठोर नहीं बोलते हो, (यदि दूसरे के द्वारा
कठोर) बोला गया (है), (तो) भी (तुम) हँसते हो, हँसकर प्रिय (वचनों को) बोलते हो। तुम्हारा स्वभाव किसके समान है ? (हम) नहीं जानते हैं।
वन-मूल्य ]
[5
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org