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97. जम्मि
प्रविण - हिमप्रत्तणेण ते गारवं वलग्गंति । तं विसममरगुप्पेतो गरुप्राण' विही खलो होइ ॥
98. रमइ विहवी विसेसे थिइ मेत्तं थोत्र - वित्थरो महइ | मग्गइ सरीरमधणो रोई कत्थो ||
जीएच्चिन
99. विरसाअंता बहलत्तणेण हिग्रए खलति थो विहवत्तणेणं
सुहंभरप्पच्चि
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100. विरसम्मि वि पडिलग्गंण तरिज्जइ कह वि जं णिवत्ते ेउं । हिमस्स तस्स तरलत्तणम्मि मोहो इह जणस्स ||
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परिमोहा | सुति ॥
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वाक्पतिराज की
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