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प्रकाशकीय
राजस्थान प्राकृत भारती संस्थान के 24 वें पुष्प के रूप में 'वाक्पति. राज की लोकानुभूति' पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हुए हर्ष का अनुभव हो रहा है । प्राकृत भारती संस्थान प्राकृत भाषा के विकास के लिए समर्पित है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि प्राकृत भाषा का ज्ञान भारतीय संस्कृति के उचित मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण है । इसका अध्ययन-अध्यापन वैज्ञानिक पद्धति से हो यह अत्यन्त आवश्यक है । प्राकृत साहित्य बहु आयामी है। इसमें लिखे गए महाकाव्य उच्च कोटि के हैं। इन महाकाव्यों में जहाँ साहित्यिक सौंदर्य भरपूर है, वहां ही वे दार्शनिक-मूल्यात्मक दृष्टि से भी अोतप्रोत हैं । डा. सोगाणी ने वाक्पतिराज द्वारा रचित महाकाव्य, गउडवहो में से शाश्वत अनुभूतियों का चयन 'वाक्पतिराज की लोकानुभूति' के अन्तर्गत करके एक नया मायाम प्रस्तुत किया है। माथानों का हिन्दी अनुवाद मूल को स्पर्श करता हुआ है। उन गाथानों का व्याकरणिक विश्लेषण देकर तो उन्होंने प्राकृत भाषा के प्रध्ययन-अध्यापन को एक नई दिशा प्रदान की है। प्राकृत भारती इस प्रस्तुतीकरण के लिए उन्हें साधुवाद देता है । हमें लिखते हुए हर्ष होता है कि उन्होंने इसी प्रकार से 10 चयनिकाए तैयार की हैं जिनको प्राकृत भारती ने अपने प्रकाशन कार्यक्रम में सम्मिलित किया है। ये सभी चयनिकाएं पाठकों को विभिन्न विषयों का ज्ञान प्रदान करेंगी और प्राकृत के अध्ययन-अध्यापन की दिशा में महत्वपूर्ण सिद्ध होंगी, ऐसी पाशा की चाती है।
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