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162. जैसे दीर्घ काल तक संचित ईंधन को पवन-सहित अग्नि
तुरन्त भस्म कर देती है, वैसे ही ध्यानरूपी अग्नि अपरिमित कर्मरूपी ईंधन को क्षणभर में भस्म कर देती है।
163. जरा-मरण के प्रवाह के द्वारा बहा कर ले जाए जाते हुए
प्राणियों के लिए धर्म (अध्यात्म) टापू (आश्रय गृह) (है), सहारा (है), रक्षास्थल (है) तथा उत्तम शरण (है)।
164. धैर्यवान् के द्वारा भी (आवश्यक रूप से) मरा जायगा, (तथा)
कायर पुरुष के द्वारा भी आवश्यक रूप से मरा जायगा; इसलिए (इस) अवश्य मरण में धीरता के साथ मरने के लिए (समर्थ होना) निश्चय ही अधिक अच्छा है ।
165. सेनापति के निहत (मारा हुआ) होने पर जिस तरह सेना
नष्ट हो जाती है, अर्थात् भाग जाती है, इसी प्रकार मोहनीय कर्म के क्षय को प्राप्त होने पर कर्म नष्ट हो जाते हैं।
166. जिसके बिना लोक का व्यवहार बिलकुल नहीं निभता है,
उस, मनुष्यों के केवल मात्र गुरु, अनेकान्तवाद को नमस्कार ।
चूँकि नय के बिना मनुष्य के स्याद्वाद का ज्ञान नहीं होता है, इसलिए एकान्त (दृष्टि) को समाप्त करने के इच्छुक व्यक्ति द्वारा वह (नय) समझा जाना चाहिए।
168. . निश्चय ही वस्तु अनेक धर्मों (रणों) से युक्त (होती है),
उसके एक (गुण) के कहने की इच्छा से एक गुण ही कहा
चयनिका ]
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