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115. क्रिया-हीन ज्ञान निकम्मा (होता है), (तथा) अज्ञान से
(की हुई) क्रिया (भी) निकम्मी (होती है); (प्रसिद्ध है कि) देखता हुआ (भी) लँगड़ा (व्यक्ति) (आग से) भस्म हुआ, और दौड़ता हुआ (भी) अन्धा व्यक्ति (आग से भस्म हुआ)।
116. (आचार्य) (ऐसा) कहते हैं (कि) (ज्ञान और क्रिया का)
संयोग सिद्ध होने पर फल प्राप्त होता है), क्योंकि (ज्ञान अथवा क्रियारूपी) एक पहिए से (धर्मरूपी) रथ नहीं चलता है। (समझो) अन्धा और लंगड़ा, वे (दोनों) जंगल में इकट्ठ
मिल कर जुड़े हुए (प्राग से बचकर) नगर में गए। 117. व्यवहार से जीव आदि (तत्वों) में श्रद्धा सम्यक्त्व
(सम्यग्दर्शन) (है); निश्चय से आत्मा हो सम्यक्त्व होती
है, (ऐसा) अरहंतों द्वारा कहा गया (है)। 118. सम्यक्त्व (आध्यात्मिक जागृति) से रहित (व्यक्ति) अत्यन्त
कठोर तप करते हुए भी अध्यात्म के लाभ को हजारों-करोड़ों ___ वर्षों में भी प्राप्त नहीं करते हैं। ... 119. (जिसके द्वारा) निर्दोष आध्यात्मिक जागृति (प्राप्त की गई
है), (वह) ही अद्वितीय (है), (चूंकि) वह ही निर्वाण (समता) को प्राप्त करता है। आध्यात्मिक जागृति से रहित
व्यक्ति उस इच्छित लाभ को प्राप्त नहीं करता है। 120. एक ओर सम्यग्दर्शन (की प्राप्ति) का लाभ (हो), (तथा)
दूसरी ओर त्रिलोक (की प्राप्ति) का लाभ हो; (उन दोनों) में) जो सम्यग्दर्शन (की प्राप्ति) का लाभ (है), (वह) त्रिलोक (की प्राप्ति) के लाभ से निस्सन्देह अधिक अच्छा (है)।
चयनिका ].
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