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63. जो (व्यक्ति) कठिनाई से जीते जाने वाले संग्राम में हजारों के
द्वारा हजारों को जीते (और) (जो) एक स्व को जीते, (इन ___दोनों में) उसकी यह (स्व पर जीत) परम विजय है।
64. (तू) अपने में (अंतरंग राग-द्वेष से) ही युद्ध कर, (जगत् में)
बहिरंग (व्यक्तियों) से युद्ध करने से तेरे लिए क्या लाभ ? (सच यह है कि) अपने में ही अपने (राग-द्वेष) को जीत कर सुख बढ़ता है।
65. आत्मा ही सचमुच कठिनाई से वश में किया जाने वाला (होता
है), (तो भी) आत्मा ही वश में किया जाना चाहिये। (कारण कि) वश में किया हुआ आत्मा (ही) इस लोक और परलोक में सुखी होता है।
66. संयम और तप से मेरे द्वारा वश में किया हुआ (मेरा) आत्मा
अधिक अच्छा (है); (किन्तु) बंधन और प्रहार से दूसरों के द्वारा वश में किया जाता हुआ मैं (अधिक अच्छा) नहीं (हूँ)।
67. (व्यक्ति) एक ओर से निवृत्ति करे तथा एक ओर प्रवृत्ति
(करे); एक ओर असंयम से निवृत्ति (करे), दूसरी ओर संयम में प्रवृत्ति (करे)।
68. जैसे लगामा के द्वारा घोड़े (बलपूर्वक) रोके गये (होते हैं),
(उसी प्रकार) ज्ञान से, ध्यान से, और तपस्या की शक्ति से इन्द्रिय-विषय और कषाएँ दृढ़तापूर्वक रोकी जाती हैं।
चयनिका ]. .
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