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41. वस्तु का स्वभाव धर्म ( है ); क्षमादि परिणाम भी दस प्रकार का धर्म ( है ); रत्नों का तिगड्डा प्रर्थात् तीन रत्नों का समूह भी धर्म ( है ); (तथा) जीवों की रक्षा करना ( भी ) धर्म है ।
42.
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46.
1.
देवों, मनुष्यों और पशुओं द्वारा किए जाते हुए भीषण उपसर्ग के अवसर पर भी जो क्रोध के द्वारा तपाया नहीं जाता है, उस (व्यक्ति) के ( जीवन में) निर्मल क्षमा होती है ।
45. (जो) पर में दुःख - जनक (मानसिक स्थिति) का कारण ( है ) ( उस) वचन को छोड़कर जो साधु ( या श्रावक ) स्व-पर के लिए हितकारक वचन को बोलता है, उसके (जीवन में) चौथा सत्य धर्म होता है ।
2.
(मैं) सब जीवों को क्षमा करता हूँ; सब जीव मुझको क्षमा करें; मेरी सब प्राणियों से मित्रता (है); किसी से भी मेरा वैर नहीं ( है ) ।
जो (व्यक्ति) कुटिल ( बात ) नहीं सोचता है, कुटिल ( कार्य ) नहीं करता है, कुटिल (वचन) नहीं बोलता है तथा (जो) निज-दोष को नहीं छुपाता है, उसके (जीवन में) प्रार्जवधर्म होता है ।
सत्यवक्ता मनुष्य लोक में माता की तरह विश्वसनीय, गुरु की तरह पूज्य तथा स्वजन की तरह सबका प्रिय होता है ।
(क्षमा, मार्दव, श्रार्जव, सत्य, शील, संयम, तप, त्याग, प्राकिंचन और ब्रह्मचर्य) ।
( सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यक् चारित्र ) ।
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