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________________ अध्वुच्छिन्नं (अव्वुच्छिन्न) 1/1 वि । च (अ)=और । सुहं (सुह) 1/11 सुबुवओगप्पसिद्धाण [ (सुद्ध)+ (उवमोग)+ (प्पसिद्धाणं) ] [ (सुब) +(उवप्रोग)+ (प्पसिद्धाणं)] [(सुद्ध) भूक अनि-(उवयोग)-(प्पसिद्ध) भूक 6/2 अनि ] । 143 जस्स (ज)-1 स । ण(4) नहीं । विज्जदि (विज्ज) व 3/1 मक । रागो सग) 1/1। बोसो (दोस) 1/1 | मोहो (मोह) 1/11व (अ) = और । सव्वदम्वेसु [(सव्व) वि-(दव्व) 7/2] । गासवदि [ (ण)+ (पासवदि) ] । ण (प्र) = नहीं । पासववि (प्रासव) व 3/1 सक । सुहं (सुह) 1/1 वि । असुहं (असुह) 1/1 वि। समसुहदुक्खस्स [ (सम) वि-(सुह)-(दुक्ख) 4/1 ] । भिक्खुस्स (भिक्खु) 4/11 144 अग्भंतरसोधीए [(अभंतर) वि-(सोधि) 3/1] । बाहिरसोषी [ (बाहिर) ] वि-(सोधि) 1/1 ] | वि (अ) = भी। होदि (हो) व 3/1 अक । णियमेण (क्रिविन)= आवश्यक रूप से । अन्भंतरदोसेण [ (अभंतर) वि-(दोस) 3/1] । हु (म)=ही। कुणदि (कुण) व 3/1 सक । गरो (गर) 1/1 । बाहिरे (बाहिर) 2/2 वि । दोसे (दोस) 2/2 वि। 145 मदमाणमायलोह-विवज्जियमावो [(मद')-(माण)-(माया माय') (लोह)-(विवज्ज विवज्जिय) भूकृ-(भाव) 1/1] । दु (अ) = हो । भावसुद्धि [(भाव)-(सुद्धि) 1/1] । ति(अ) =वाक्य समाप्ति सूचक । परिकहियं (परिकह) भूकृ. 1/1। भग्वाणं (भब्व) 4/2 । लोयालोयप्पबरिसोहि [(लोय)+(प्रलोय)+(परिसीहिं)] [(लोय)-(अलोय)(प्पदरिसि) 3/2] । 1: मद= कामुकता (माप्टे : संस्कृत-हिन्दी कोश)। 2. हेम प्राकृत व्याकरण 1-84 (संयुक्ताक्षर के पूर्व ह्रस्व होता है)। 3. समासगत शब्दों में रहे हुए स्वर परस्पर में ह्रस्व के स्थान पर दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर ह्रस्व हो जाते हैं (हेम प्राकृत व्याकरण, 1-4)। चयनिका ] . . - [ 143 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004166
Book TitleSamansuttam Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2000
Total Pages190
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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