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कोहो (कोही नपुसंक लिगमा नपु. लिंग
तुरगा (तुरग) 1/2 1 व (अ) = जैसे । रहि (रज्ज) 3/2।.. 69 (अ)] अग्गीथोवं [(भग्गी)-थोवं (म)] 1 कसायपोवं [(कसाय)
थोवं (म)] । च(प्र) =और । न (म) = नहीं । ह (म)=ही । मे (तुम्ह) 3/1 स । वीससियवं (वीसस) विधिक 1/1। पोवं (भ) = थोड़ा सा। पि (अ) = भी। ह (म) = क्योंकि । तं (त) 1/1 स ।
बहु (म) =बहुत । होई (हो) व 3/1 प्रक। - 1. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'भग्गी' किया गया है।
2. यदि एक वाक्य में पु., स्त्री., नपु. लिंग वाले शब्द हैं तो सर्वनाम
और क्रिया नपुसंक लिंग के अनुसार होंगे। 70 कोहो (कोह) 1/1। पीई (पीइ) 2/1। पणासेइ (पणास) व 3/1 .. सका। माणो (माण) 1/1। वियनासगो [ (विणय)-(नासण)
11 त्रि] । माया (माया) 1/1। मित्तानि (मित्त) 2/2 | नासेह (नास) व 3/1 सक । लोहो (लोह) 1/1। सव्वविणासगो [ (सव्य)
वि-(विणासण) 1/1 नि]। .. 71 उवसमेण (उवसम) 3/11 हणे (हण) विधि 3/1 सक। कोहं (कोह) ... 2/1 | माणं (माण) 2/1 । मद्दवया (मद्दव) स्वार्थिक 'य' 5/1 ) जिणे
(जिण) विधि 3/1 सक। मायं (माया) 2/1 | चज्जवभावेग [(च)+ (मज्जव)+(भावेण)] च (म) =और [(मज्जव) = (भाव) 3/1] । लोभ (लोभ) 2/1 संतोसो (संतोस) 5/11 *संतोसानो-संतोसम-विभक्ति जुड़ते समय दीर्घ स्वर बहुधा कविता
में हस्व हो जाते हैं । पिशलः प्रा. भा. व्या. पृष्ठ 182।। .72 महा (प्र) = जिस प्रकार। कुम्मे (कुम्म) 1/1 । सबंगाई [(स) वि: (अंग) 2/2] | सए (स) स्वार्थिक 'म' प्रत्यय 7/1 वि । वेहे (देह) 7/1
समाहरे (समाहर) व 3/1 सक। एवं (प्र)= इसी प्रकार से पावाई
(पाव) 2/2 । मेहावी (मेहावि) 1/1 वि । प्रज्झपेण (अज्झप) 3/1। . छन्द की मात्रा की पूत्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। 122: ]
[ समणसुत्तं
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