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(गिद्धि)-(विहीण) भूक 1/1 । तस्स (त) 6/1 स । सउच्चं (सउच्च)
1/1 । हवे (हव) व 3/1 अक । विमलं (विमल) 1/1 वि । 50 विसयकसाय-विणिग्गहभावं [(विसय)-(कसाय)-(विरिणग्गह)-(भाव)
2/1] । काऊण (का) संकृ । झाणसज्झाए' [(झारण)-(सज्झाम) 7/1] । जो (ज) 1/1 सवि । भावइ (भाव) व 3/1 सक । अप्पाणं (अप्पाणं) 2/1 । तस्स (त) 6/1 सवि । तवं (तव) 1/1 । होदि (हो) व 3/1 अक्र । णियमेण (क्रिवित्र) = नियम से । । ___- 1. तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग भी
पाया जाता है । (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-135)
.51 णिग्वेदतियं [(णिग्वेद)-(तिय) 2/1] । भावइ (भाव) व 3/1 सक ।
मोहं (मोह) 2/1। चण (च) संकृ । सव्वदन्वेसु [(सव्व)-(दव्व) 7/2] । जो (ज) 1/1 सवि । तस्स (त) 6/1 स । हवे (हव) व 3/1 अक । चागो (चाग) 1/1। इदि (अ) = इस प्रकार । भणिद (भण)
भूकृ 1/1। जिणरिवेहि (जिणवरिंद) 3/2 । 52 जे (ज) 1|| स । य (अ) = और । कते (कंत) 2/2 वि । पिए.(पिन)
2/2 वि । भोए (भोअ)2/2 । लखे (लद्ध) भूक 2/2 अनि । विपिटिट्ठकुम्वइ [(विपिट्ठि') मूल शब्द 2/1 – कुव्वइ (कुन्व) व 3/1 सक] । सांहीणे [(स)+ (अहीणे)] [(स)-(अहीण) 2/2 वि ] । चयइ (चय) व 3/1 सक । भोए (भोप) 2/2 । से (त) 1/1 सवि । हु (अ) = ही । चाइ1 (चाइ) मूल शब्द 1/1 वि । त्ति (अ)= इस प्रकार । वुच्चई
(बुच्चइ) व कर्म 3/1 सक अनि। - 1. किसी भी कारक में मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा सकता
है। (पिशल, प्रा. भा. व्या. पृष्ठ 517) यह नियम विशेषण पर
भी लागू किया जा सकता है।
2.. छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु 'इ' को 'ई' किया गया है। चयनिका ]
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