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सवि । मण्णंतो (मण्ण) वकृ 1/1 | होवि (हों) व 3/1 अक । बहिरप्पा
(बहिरप्प) 1/11 32 रागो (राग) 1/1। य (अ)=और । बोसो (दोस) 1/1। विय
(म)=ौर । कम्मवीयं [(कम्म)-(वीय) 1/1] | कम्मं (कम्म) 1/11 च (अ) = भी। मोहप्पभवं [ (मोह)-(प्पभव)11/1 वि] । वयंति (वय) व 3/2 सक। कम्मं (कम्म) 1/1। च (अ) =निश्चय ही । जाइमरणस्स [(जाई) - (मरण) 6/1] | मूलं (मूल) 1/11 दुक्खं (दुक्ख) 1/1। च (अ) = निस्संदेह। माईमरणं [ (जाई)- (मरण) 1/1] । 1. समास के अन्त में 'उत्पन्न' अर्थ में प्रयुक्त होता है। 2. समासगत शब्दों में रहे हए स्वर परस्पर में हस्व के स्थान पर
दीर्घ और दीर्घ के स्थान पर हस्व प्रायः हो जाते हैं (हेम प्राकृत
व्याकरण 1-4) 33 न वि (म)=नहीं । तं (त) 1/1 सवि । कुणइ (कुण) व 3/1 सक ।
अमित्तो (अमित्त) 1/1 वि । सुद्छु वि (अ) = प्रत्यन्त ही। य (अ) = तथा । विराहिमओ (विराहिन) भूकृ 1/1 अनि । समस्यो(समत्य) 1/1 वि । वि (अ) = भी। जं(ज) 1/! सवि । दो (दो) 1/2 वि । वि (प्र) = ही । अनिग्गहिया (प्र-निग्गहिय) भूकृ 1/2 अनि । करंति (कर) व 3/2 सक । रागो (राग) 1/1। य म) = और दोसो (दोस) 1/1।
1. 'य' का प्रयोग 'मोर' अर्थ में दो बार कर दिया जाता है। 34 न (अ)- नहीं। य (प्र) = बिल्कुल । संसारम्मि (संसार) 7/1।
सुहं (सुह) 1/1 । जाइजरामरणदुक्खगहियस्स [(जाइ)-(जरा)(मरण)-(दुक्ख)-(गह) भूक 4/1 ] । जीयस्स (जीच) 4/1 । अत्वि . (प्रस) व 3/1 अक । जम्हा (अ) =चूकि । तम्हा (अ) = प्रतः । ___मुक्खो (मुक्ख) 1/1। उवादेओ (उवादेअ) 1/1 वि । 112 ]
[ समणसुत्तं
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