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जैनन्यायपञ्चाशती
घ्राणेन्द्रियस्य दुर्गन्धमयापवित्रपदार्थाघ्राणे सति उपघातो भवति तथा कर्पूरादिसुगन्धमयपदार्थसम्पर्के तु भवति अनुग्रहः। इयमेवानुकूला स्थितिः अनुग्रहरूपेण वर्तते। ___श्रोत्रेन्द्रियस्य भेर्यादिकर्कशशब्दश्रवणे कर्णपटलस्य विकृतिरेव उपघातः। एतद्प्रतिकूलं तु मन्दमन्दताललयबद्धं सुमधुरसंगीतमयशब्दश्रवणतृप्तिरेवानुग्रहः।
___ अयमुपघातोऽनुग्रहश्च केवलं चतुर्वेव इन्द्रियेषु भवति, यतो हि इमानि विषयैः सह संयुज्यन्ते। चक्षुषो मनसो वा न संयोगः पदार्थैः सहेति नात्र भवति उपघातोऽनुग्रहश्चापि।अस्यां स्थितौ केन मतिमता चक्षुषो मनसश्च प्राप्यकारित्वं साधयितुं शक्यते।न केनापीति भावः । अत्रेदमपि बोध्यं यत् उपघातोऽनुग्रहश्च विषयग्राहकेष्विन्द्रियेषु एव भवति न तथा शक्तिः मनश्चक्षुषोः।
उपघात और अनुग्रह स्पर्शन आदि चार इन्द्रियों का होता है, मन और चक्षु का नहीं होता। इसका क्या कारण है, इस जिज्ञासा में कहा गया-अपने-अपने विषय को प्राप्त करने वाली स्पर्शन आदि इन्द्रियों का ही उपघात और अनुग्रह होता है। मन और चक्षु विषय को प्राप्त नहीं करते, इसलिए उनका उपघात और अनुग्रह नहीं होता।
उपघात क्या है और अनुग्रह क्या है, इस प्रश्न में यह ध्यातव्य है कि प्रतिकूल अनुभूति होना उपघात है और अनुकूल अनुभूति होना अनुग्रह है। यह उपघात और अनुग्रह चक्षु और मन को छोड़कर केवल चार इन्द्रियों का होता है। इसका कारण यह है कि स्पर्शन, रसन, घ्राण और श्रोत्र-ये इन्द्रियां ही विषय को प्राप्त कर उनका प्रकाशन करती हैं और चक्षु तथा मन विषय को बिना प्राप्त किए ही उसका प्रकाशन करते हैं। जब चक्षु और मन-इन दोनों का विषय से सम्पर्क ही न हो तब उपघात और अनुग्रह की चर्चा किसलिए की जाय?
उपघात कैसा होता है और अनुग्रह कैसा होता है, इस विषय में यह जानना चाहिए कि स्पर्शन-इन्द्रिय का कर्कशपदार्थों के स्पर्श से अथवा तीक्ष्ण तृणादि के संसर्ग से जो उद्वेग होता है वही उपघात है। इसके प्रतिकूल सुख स्पर्श में प्रयुक्त पुष्पादि का संयोग होने पर जो सुख की अनुभूति होती है वही अनुकूलता यहां अनुग्रह है।
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