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परिशिष्ट-३
श्री जिनसमुद्रसूरि के महाराज अनूपसिंह और राठौड़ वंशावली सम्बन्धी काव्य में छाजहड गोत्र
सन्बन्धी प्राप्त पद्यकुमर स्वरुप देखी काजल सौं नेत्र रेखी,
छाजडे में सुविशेषी काजल दे नाम जू ॥ आणिकै सेठ को दीनौ लहिणौ सो दूर कीनौ,
दोहू को रह्यो अकीनो आवे. निज धामजू । बरहड़ीयां का गोत चाजडे ते छाजडोत,
ऐसो गोत छाजड को भयो तिण ठाम जू ।। वदत समुंद महाराज श्री अनूपसिंघ जो को,
काको करै काम वाको सरै काम जू ॥३८॥
काजल के वेर उद्धरण जू किये उद्धार,
सात बीस चैत्य खेड वीचि गुरु वेणजू । श्री जिनपत्तिसूरि प्रतिष्ठा करी पडूर, .
मांडयो विषवाद भूर वरढीयै तेणजू । जीतो खरतरे. सूर बेगड विरुद पडूर,
हास्यो गुरु बरदीयै कोले भये मेण जू । वेगड रू कोले भाई छाजड दोनु कहाई,
वृद्धवंत हो सदाई जोलू जिन जैन जू ॥३९।।
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