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भाग १, मणिधारी अष्टम शताब्दी ग्रंथ और युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि, मणिधारी श्रीजिनचंद्र सूरि, दादा श्री जिनकुशलसूरि और युगप्रधान श्री जिनचंद्रसूरि नामक चारों दादासाहब के हमारे लिखित जीवनचरित्र दृष्टव्य हैं । 'मणिधारी अष्टमशताब्दी ग्रंण' में प्रकाशित खरतर गच्छ के साहित्य की सूची भी बहुत ही महत्वपूर्ण है।
आचार्य श्रीवर्द्धमानसूरिजी से लेकर अकबर प्रतिबोधक श्री जिनचन्द्रसूरिजी तक के आचार्यों ने लाखों अजैनों को जैन धर्म का प्रतिबोध दिया। ओसवाल वंशके अनेक गोत्र इन्हीं महान् आचार्यों के स्थापित हैं। महत्तयाण जाति की प्रसिद्धि श्री जिनचंद्रसूरिजी से विशेष रूप में हुई। इस जाति के भी ८४ गोत्र बतलाये जाते हैं। श्रीमाल जाति के १३५ गोत्रों में ७९ गोत्र खरतर गच्छ के आचार्यों के प्रतिबोधित बतलाये गए हैं । पोरवाड़ जाति के पंचायणेचा गोत्र वाले भी खरतर गच्छानुयायी थे। आगे प्रकाशित की जाने वाली खरतर गच्छीय गोत्रों की सूची में ओसवाल वंश के ८४, श्रीमाल के ७९ पोरवाड़ और महतियाण के कुल १६६ गोत्रों की संख्या दी है। __ खरतर गच्छ के कई आचार्यों का संक्षिप्त विवरण ऊपर दिया गया है, उसका उद्देश्य यह है कि आगे जो खरतर गच्छ के आचार्यों द्वारा प्रतिबोधित जैन जातियों व गोत्रों का जो विवरण दिया जा रहा है, उसमें उन आचार्यों के नाम हैं । अतः पाठकों को वे किसके शिष्यपट्टधर थे और कब हुए ? यह जानकारी मिल सके ।
हमारे वक्तव्य के बाद जो गोत्रों की सूची आदि दी गई है वह हस्तलिखित प्रतियों में जिस रूप में मिली,
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