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कारण शात किया कि स्वधर्मी बहिनों को मेट करने के लिए ये प्रतिदिन ले जाती हैं। रामदेव उद्धरण के घर का आचार देख कर प्रसन्न हुआ । एक बार उद्धरण ने नागपुर में मन्दिर निर्माण कराया था। प्रतिष्ठा के लिए बुलाये आचार्य के न पहुँचने पर मंत्रीपत्नी, जो खरतरों की पुत्री थी-के कथन से चैत्यवासियों के पास प्रतिष्ठा न कराके सकुटुम्ब मंत्री खरतरगच्छीय श्रावक हो गया ।
फोफलियां, बच्छावत, दसानी, मुकीम दादा श्री जिनदत्तसूरिजी ने पहले सगर राजा के पुत्र बोहित्थ को देवलवाडा में प्रतिबोध कर कर्ण राजा के अतिरिक्त सब कुटुम्ब को जैन बनाया था जिसका उल्लेख उपर आ चुका है। कर्ण राजा पिता का राज्य करता था, उसके रत्नदेवी रानी थी। एवं समरा, उद्धरण, हरिदास और वीरदास नामक चार पुत्र थे । एकवार मत्स्येन्द्रगढ और सराणा को युद्ध में जीत कर बहुत से धन के साथ आते हुए गौरीसाह की सेना से मार्ग में युद्ध छिड गया जिसमें राजा कर्ण वीरगति को प्राप्त हुआ। रानी अपने पुत्र के साथ खेडनगर आकर अपने पीहर में रहने लगी। चारों पुत्र कलाभ्यास करते थे। एकवार पद्मावती देवी ने उसे स्वप्न में आ कर कहा-कल तुम्हारे प्रबल पुण्योदय से श्री जिनेश्वसूरि जी महाराज. यहाँ पधारेगे, उनके समीप जाकर जैनधर्म स्वीकार करना, सब प्रकार का सुख होगा!
गुरु महाराज श्री जिनेश्वरसूरि के पास जैनधर्म का बोध पाकर चारों भ्राता जैन हो गए । व्यापार में उन्होंने प्रचुर धन कमाया। वे सर्वदा जिनेन्द्र पूजा में परायण थे। सूरिजी के उपदेश से शत्रुञ्जयादि के संघ निकाले, तीर्थ
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