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राखेचा पुगलिया .. जैसलमेर के राव जैतसी भाटी का पुत्र केल्हण कुष्ट रोग से पीडित था। कुलदेवी के कथन से सिन्धु देश जाकर श्री जिनदत्तसूरिजी से अपनी दुखगाथा कही। सूरिजी ने उसके जैनधर्म स्वीकार करने पर जेसलमेर की ओर विहार किया। और पधारने पर तीन दिन तक राजकुमार को उनकी नजर के समक्ष रखा । उसका शरीर निरोग और स्वर्णाभ हो गया। सं० ११८७ में केल्हण को प्रतिबोध देकर 'राखेचा' गोत्र स्थापित किया। उसके वंशज पूगल में जाकर बसने से 'पूगलिया' कहलाये।
लूणिया सिन्धुदेश के मुलतान में मंधड़ा महेश्वरी मंत्री धींगड़मल्ल-जो हाथीशाह नाम से प्रसिद्ध था-के पुत्र राजमान्य लूणा को रात्रि में सोते समय साँप काट खाया। नाना उपचार करने पर भी जब वह निर्विष नहीं हुआ तो तत्र विराजित परम प्रभावक श्री जिनदत्तसूरिजी की महिमा सुनकर उनसे निवेदन किया। सूरिजी ने उसे जैनधर्म स्वीकार करने का उपदेश देकर निर्विष करना स्वीकार किया। लूणा को सूरिजी के समक्ष लाने पर सूरिजीने साँप को आकृष्ट किया। सांप ने मनुष्यवाणी में कहा-इसने पूर्वभव-ब्राह्मण के भव में जन्मेजयराजा के यज्ञ में होमने के लिए साँपों को बुलाया। मैं भी उसमें आया और यज्ञ स्तम्भ के नीचे शान्त्यर्थ रखी हुई शांतिनाथ जिन प्रतिमा को देखकर मुझे जातिस्मरण ज्ञान हुआ। मैंने देखा मैं पूर्व जन्म में महातपस्वी मुनि था, पारणे के दिन भिक्षार्थनगर में जाने पर लोगों से तिरष्कृत होकर क्रोधावेश में पञ्चत्व
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