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रतनपुरा कटारियादि ४० गोत्र सोनगरा चौहान रत्नसिंह ने रत्नपुरी वसायी जिस के पांचवें पाट में राजा धनपाल हुआ सं० ११ में राजगद्दी बैठा । एकवार वह वक्र शिक्षित घोडे पर सवार होकर बहुत दूर चला गया। जब बाग ढीली छोडी तो घोडा रुका तालाब पर पानी पिलाकर घोडे को बांध कर वृक्ष के नीचे राजा सो गया । एक सांप आकर राजा को दंश गया जिससे वह मूर्छित हो गया। संयोगवश कृपालु गुरु महाराज जिनदत्तरिजी विचरते हुए वहां पहुंचे और राजा को विष व्याप्त देखकर करुणावश निर्विष कर दिया। राजा ने उठकर गुरुदेव को वंदन किया और अपने नगर में बडे महोत्सव से ले गया । राजा ने उन्हें धन देना चाहा तो गुरुदेव ने द्रव्य रखना आचार विरुद्ध बतला कर धर्मोपदेश दिया । राजा ने उन्हें अपने नगर में चौमासा कराया
और नवतत्त्वादि सीखकर जैन श्रावक हो गया । नगर के नाम से 'रतनपुरा' गोत्र स्थापित हुआ। इनसे आगे चल कर कटारिया, रामसेना, बलाइ, वोहरा, कोटेचा, सांभरिया, नराणंगोता, भलाणिया सापद्राह, मिनी आदि गोत्र निकले। जिन चौहान क्षत्रियों के साथ राजा ने जैन धर्म स्वीकार किया था । उनसे बेडा, सोनगरा, हाडा, देवड़ा, काच, नाहर, मालडीचा, बालोत, बाधेटा, इवरा, रासकिया, साचोरा, दुदणेचा, माल्हण, कुदणेचा, पावेचा, विहल, सेंभटा, काबलेचा, खीची, चीवा, रापडिया, मेलवाल, बालीचा-ये कुल चौतीस गोत्र हुए ।
माल्हू रत्नपुर नरेश के माल्हदे नामक राठी महेश्वरी मंत्री
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