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नरेश ने श्रावण भाद्रपद का भविष्य पूछा तो उन्होंने कहा सावण सूका, हरा भादवा होगा । बात मिलने पर सबने प्रशंसा की कौर उनका गोत्र सावणसुखा कहलाया ।
गोलछा-दूसरा पुत्र गोला और तीसरा वच्छराज था । जिनके वंशज 'गोलेच्छा कहलाये ।
पारख-भेसासाह के चतुर्थ पुत्र नाम पाशु था । आहड़ नरेश चंद्रसेन ने उसे रत्नादि की परीक्षा के लिए अपने पास रखा, उसके वंशज पारख कहलाये ।
पांचवें पुत्र गद्दाशाह के वंशज 'गद्दशाह' और आशपालके आशाणी कहलाये।
इस प्रकार राठौड़ खरहत्थ के वंशज और भी आगे चलकर बुच्चा, फाकरिया, घंटेलिया, कांकड़ा, सचोपा, साहिला, संखवालेचा, कुरकच्चिया, सिंधड़, कुंभटीया, ओस्तवाल, गुलगुलिया आदि पचास ५० गोत्र प्रसिद्ध हुए।
: आयरिया, लूणावत सं० १९९८ में श्री जिनदत्तसूरि सिन्धु देश पधारे हजार गाँवों का स्वामी अभयसिंह भाटी शिकार के लिए जा रहा था, उसने अशुभोदय से आहार के लिए जाते मुनिदर्शन को अशुभ मान कर अपशब्द कहे। राजा के अनुचर ने मुनि को कष्ट दिया उसके शरीर में रक्त-पुष्पी हो गई । राजा ने क्षमायाचना की मुनिने अपने गुरु महाराज श्री जिनदत्तसूरि को सिन्धु नदीतट पर बतलाया । राजाने जाकर गुरुवंदन किया। उपदेश श्रवण कर शिकार करना छोड़ा । राजाके कारण पूछने पर सूरिजी ने इसे
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