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________________ २८ सचेतो सम्वत् १०७६ में गुरु महाराज दिल्ली पधारे। वहाँ सोनिगरा चौहान राजा के पुत्र बोहित्य को सौंप ने काट खाया । उसे मृतक ज्ञात कर श्मशान ले जाने लगा तो मार्ग में वटवृक्ष के नीचे अवस्थित गुरु महाराजने कहायदि जैनधर्म स्वीकार करे तो यह जीवित हो सकता है। राजा के स्वीकार करने पर गुरु महाराजने उस पर अपनी अमृत- स्राविनी दृष्टि डाली जिससे वह सचेत होकर उठ बैठा । बोहित्य राजपुत्र जैन बना। गुरु महाराज ने 'सचेती गोत्र' स्थापित किया । लोढा - अन्यदा गुरु महाराज ने लाढा महेश्वरियों को प्रतिबोध दिया, जिससे वे जैन होकर 'लोढा' गोत्रीय प्रसिद्ध हुए । श्रीपति तिलेरा, ढा श्री जिनेश्वरसूरि -- सं० ११०१ में श्री जिनेश्वरसूरिजी महाराज गोढवाड़ के नाणा बेड़ा गांवमें पधारे वहां सोलंकी क्षत्रिय गोविन्दचन्द्र को धर्मोपदेश से प्रतिबोध देकर जैन बनाया, उनका श्रीपति गोत्र हुआ। गोविन्दचन्द्र के पुत्र तैल का बडा व्यापार करने से तिलेरा कहलाये । उनके वंशज वाढा तिलेरा आगे चल कर स० १६१५ में शरीर में हृष्ट-पुष्ट होने से ढढ्ढा (दृढा) कहलाने लगे । श्री श्रीमाल जिनचन्द्रसूरि - दिल्लीश्वर पेढ पमार का भंडारी श्रीमल महत्तियाण जाति का शिवभक्त था। पेढपमार श्रीमल के Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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