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________________ १८ गोत्र थया पलरा ब्रह्मेचा गोत्र थंया बैद डोसी कोसी गोत्र में ए कुलरीत छै ऊकरडी चाक अबोली नौतरै प्रथम टावर हुवां मजीठ देवै पछे देवै नही ए रीत है । बलाहियाँ री उत्पत्ति- गछ खरतर हरपाल भाई डाहा पुत्र सिषा भगा हरपाल | हरपाल बलायां सूं व्यापार कीनौ रातदिन व्यापार करतौ बाथीयां पड़तौ तिण सुं बलाही गोत्र नख थयौ । संवत् १६४९ वर्षे | आदु रतनपुरा चौहरा गोत्र था पछै हरपाल सुं बलाही गोत्र नख थयौ खेत्रपाल जेसलमेर रौ माताजी खीमज गोत्र जठै जायें परणें चांदणी पांचम रात्रीजोगौ ॥ ( अभय जैन ग्रन्थालय प्रतिन- ७७६४) गाहा (चौसरा) (४) अथ लुणीया गोत्र उत्पत्ति लिख्यतेः सुबध भंडार मात सरसती । अवरल वाणी देह उकत्ती ॥ देवीदास दियण बहु दत्ती । कोड घणे कर करूं कीरती ॥ १ ॥ इण घरि आदि हुवा इधकारी । पूजे जे मुज पंच हजारी ॥ धर मुलतान देस छत्रधारी । करे राज सुविहाण करारी ||२|| तिण सागल परधान प्रतप्पे । जालम हाथी सहू को जप्पे ॥ एकां थापे एक उथपे । कवि जाचे ज्युं कुरि इद कपे ||३|| पुत्र जास लूणो प्रतिपालं । जात महेसरी वंस उजालं ॥ रैण दिवस रंग रमे रसाल । आठ पुहर सुख रहे अचालं ||४|| एक दिवस स्त्री पुत्र युता । सेझ रमें निद्रा भर सुत्ता ॥ सरके वेणि ढले सिरहुँता। हर कर सरप चढ्यो तिणपहुता ||५|| चढ़ कर विंदी ठोड़ चिटकायो । पन्नग डस्यो साह मृत पायो || जागे नही पित मात जगायो । जब आलम मिल जोवण आयो ॥६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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