SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बोल्यो महाराज म्हारा घर में निरधनता छे धन उपार्जना हुवै तौ श्रावक व्रत अंगीकार कमैं (तद गुरे कह्यौ धर्मना प्रसाद थी घर में ताहरै निधान प्रगटसी। उठी घरे आव्यों दिन ३ में चरु दोय द्रव्य रा मुहरां रा भर्या जमीन में लाधा। तिणस मैं गुरु आव्या आगै देखै तो वांको उदर बिल खोदै छे तरै गुरें पूछीयो किमू करें छे तरै कह्यो महाराज उंदरा बिल में मुहरां ले गया तिण वास्ते बिल जोउ छु । तरै गुरे को निधान घर में लाधां पृठी उंदरारा बिल खोदै छै सोनू बडो रांको,छै। तिण सू रांका गोत्र । सम्वत् १२०४ थयौ छै। पछे पातसाह ना मोदीखाना कीधा तठा थी पातसाहे सेठ पदवी दीधी । ए रांका गोत्रनी उत्पत्ति और गोत्रानी उत्पत्ति १६६ गोत्रनी और जूनीवारता जैसलमेर ना जुना वेहाठां थी केतली परम्परा श्री गीतारथा नी लिखी छे । जथ खरतर गच्छ श्रावकारी उत्पत्ति याद लिख्यते __ अथ रतनपुरा वौहरा मांहि हुँ कटारीया गोत्र नीकल्यौ तिणरी वंसावली याद-नख चवांण मनरंगदेव पुत्र धनपाल ते एकण दिन सिकार गयौ वन खंड उधान में, तिहां रात्र रह्या रातें सूतां सर्प डस्यौ सो अचेत पण हुऔ मृत्यु तुल्य । तिण समै खरतरगछनायक श्री जिनदत्त सूरिजी तिहां आवी नीकल्या । धनपाल नै अचेत देखी पाणी मन्त्री छांट्यौ तिवारै सावचेत थयै हाथ जोड अरज कीवी स्वामी नगर में पधारौ, हूं आपरौ श्रावक छु आप फुरमावौ वचन प्रमाण करु । इसो वचन सुणी लाभ जाणी घनपालरै धरे आया संवत् ११८२ धनपाल रा उपगार थी सर्व खरतर गच्छ श्रावक थया । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004163
Book TitleJainacharya Pratibodhit Gotra evam Jatiyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
PublisherJinharisagarsuri Gyan Bhandar
Publication Year
Total Pages74
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy