________________
अथ चोपड़ां री उत्पत्ति
मंडोवर पडिहार, थया दीपचन्द दीवाणां राज लोक परधान, व्याकुल होइ विलखाणा जाणपुरुष जोवंता, जगतगुरु जिनदस आया गुरु देखी दुःख गया, नमें माता पूज्य पाया पडिहार राज्यतुम्ह थी रहे, ल्यौ अबराज बधावणी तुम्ह बिन मुझ सरणौ (कवण),
करौ कृपा मुझ खरतर धणी ॥ १ ॥
तै जीती जोगिणी, वीरवस वावन कीधा तै जीता पंचपीर, नदी पंच मारग दीघा तैं मूई गाइ जीबाडि मुगलचा पूत जीवाया दुनिया देखी दुखी, मेह सोवन वरसाया तो सिद्ध तणें आयां शरण,
काइ बात तणी न रहे कजी दीपचंद भणी डाही करें कहै मात कृपा करि पूजयजी ॥ २ ॥
जिनदत्तसूरिजी कही, रीति साह कीधी राणी । प्रोलि उघाडत समाकूकड गाइ लीध विकाणी विण व्याही ते दुही. तास घृत अंग लगाया आसति गुरु री इसी चयन दीपचन्दे पाया जिनदत बधाइ में कहै, हवौ मुक्त श्रावक प्रगड कूकडो गाइ घृत चौपड्यां सुं गोति तिणि कूकड चोपड ॥ ३ ॥
दोहा - पडिहारां थी चोपडा, किया दस गुरु उपगारि संवत बारविडोसरे, मा वदि सातमि बुधवारि ॥ ४ ॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org