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00. बुढ़ापे और मृत्यु से छुटकारे के लिए जो मेरा अनुगमन
करके प्रयत्न करते हैं, वे उस परमात्मा को, आत्मा से संबंध रखनेवाली समस्त (बातों) को तथा सभी (करने योग्य) कर्म को जान लेते हैं ।
01. और मृत्यु के समय में मेरे (परमात्मा) को ही स्मरण करता
हुआ जो (जीव) शरीर को छोड़कर (संसार) से विदा होता है, वह मेरी (परमात्मा की) अवस्था को प्राप्त कर लेता है। इसमें (कोई) संदेह नहीं है ।
102 हे कौन्तेय ! और जिस-जिस झुकाव को मन में रखता हुआ
(कोई भी व्यक्ति) (जीवन के) अन्त में शरीर को छोड़ता है, उस झुकाव के अनुरूप परिवर्तित हुमा (वह) उस-उस अवस्था) को सदैव प्राप्त करता है। ..
103. हे अर्जुन ! (परमात्मा पर निरन्तर) ध्यान के अभ्यास
सहित (तथा) एकाग्र चित्त के द्वारा ध्यान करता हुआ (व्यक्ति) उच्चतम दिव्य मात्मा को प्राप्त करता है.। . .
104. (जो) भक्ति से युक्त (व्यक्ति) संसार से विदा होने के समय
स्थिर मन से तथा भक्ति-शक्ति से प्राण को दोनों भौहों के मध्य में ही पूरी तरह से नियन्त्रित करके (रहता है), वह उस उच्चतम दिव्य परमात्मा को ही पहुंचता है।
चयनिका
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